________________ विक्रम चरित्र - चले गये है।' जब राजा शालिवाहन ने विक्रमादित्य को भोजन करने के लिये बुलाया तत्र विक्रमादित्य ने कहा कि ' हे राजन् ! मैं कभी भी अन्न नहीं खाता हूँ किन्तु मनुष्य जो अच्छे फल-फूल आदिका नैवेद्य देते हैं वही मैं ग्रहण करता हूँ।' तब राजा शालिवाहन उत्तम जातीय अच्छे फल तथा फूल आदि का नैवेद्य देने लगा और विचार करने लगा कि 'यह मेरे जामाता सब लोगों के बन्दनीय है। मैंने ऐसे वर को इस समय अपनी कन्या दी है इस लिये भाग्य से आगे भी मेरी कन्या सुखी रहेगी। क्यों कि -कुल, शील, लोगोंका प्रिय, विद्या, धन, शरीर और अवस्था वर के ये सात गुण देखने चाहिये। इसके बाद कन्या अपने भाग्य के ही अधीन रहती है। .. इसके स्वरूप, तेज, वचन, तथा गति से ऐसा स्पष्ट जानपड़ता है कि यह कोई कुलीन राजा अथवा विद्याधर है। यह किसी कारण से अपना कुल तथा नाम कुछ भी प्रकट नहीं करता है। इलादि सोचता हुआ राज शालिवाहन आश्चर्यचकित हुआ / इसकी स्त्री सुकोमला ने जब भोजन करने के लिये पूछा तो विक्रमादित्य ने उसे भी वही उत्तर दिया। तब सुकोमला भी हमेशा उत्तम प्रकार के फल-पुष्पादि का नैवेद्य देती थी। एकवा सुकोमला से माताने पूछाः- " जामाता क्या भेजन करते हैं ?" सुकोमला ने उत्तर दियाः- "वे देव हैं, इस लिये मनुष्य का बनाया हुआ अन्नादि नहीं खाते हैं।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org