________________ विक्रम चरित्र “देवताओ की आँखें सदा खुली रहती हैं, मनुष्यों की तरह बार बार बंद होकर नहीं खुलतीं। देवता लोग क्षण में ही अपना मनोवांछित सिद्ध कर लेते हैं। उनके गले की पुष्पमाला सदा अम्लान ( याने विकसित ) रहती है। उनके पाँव भूमि से चार अंगुल ऊँचे ही रहते हैं अर्थात् भूमि को स्पर्श नहीं करते / साथ ही देवता तो केवल जिनेश्वर देवों की भक्ति से या उनके पांचों 'कल्याणक के अवसर पर अथवा तो तपस्वियों के तप के प्रभाव से आकृष्ट होकर ही मर्त्य लोक में आते हैं या कभी पूर्व भवके स्नेह से भी आते हैं / वरना कभी नहीं आते / 2 ऐसा सोचकर शालिवाहन ने अपने मनमें निर्णय किया कि ये देव तो कदापि नहीं हैं / तब भी उत्तम पुरुष होने के कारण पुत्री दान के योग्य पात्र हैं। यह विचार कर राजा शालिवाहन ने कई युक्तियों से विद्याधर को समझाया। विक्रमादित्य स्वयं यही चाहता था अतः वह शीघ्रही राजा की बात मानने को तैयार हो गया। सुकोमला व विक्रमका लग्न राजाने भी शीघ्रही अपनी पुत्री सुकोमला का बडी धूम धाम से उस विद्याधर विक्रमादित्यके साथ पाणिग्रहण कराया। सारे पुरजन 1 जिनेश्वर भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान एवं निर्वाण इन पाँच कल्याणकोके लिये देव देवी महोत्सव करने के लिए पृथ्वीतल पर जाते हैं। २अणिमिसणयणा मणकजसाहणा पुष्फदामअमिलाणा / चउरंगुलेण भूमिं न छुवन्ति सुरा जिणा बिति // 324 // का लग्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org