________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm मुनि निरंजनविजयसंयोजित 105 होने वाली उज्जवल कीर्ति की सदा इच्छा करते हैं।" राजा के पूछने पर कि आप लोग कोन हैं ? विक्रमादित्य ने उत्तर दिया कि 'हम आकाश में विचरने वाले विद्याधर हैं और सिर्फ जिनेश्वर भगवान के सन्मुख ही भक्तिभाव पूर्वक् नृत्य करते हैं। क्यों कि___"जिसने राग द्वेष आदि दोषों को जीत लिया है, वे ही सर्वज्ञ, त्रैलोक्य पूज्य और यथास्थित सत्य वस्तु को कहने वाले अरिहंत “यदि तुम्हें चेतना व ज्ञान हो तो तुम इन्हीं भगवान का ध्यान एवं उपासना करो और उनका ही शरण व शासन स्वीकार करो।"x “राग द्वेषादि शत्रु को जीतने वाले वीतराग प्रभु का स्मरण एवं ध्यान करने वाला योगी स्वयं ही वीतरागत्व प्राप्त कर लेता है। अथवा सरागी देवों का ध्यान करके स्वयं भी राग युक्त बन जाता है / "+ देवदानवगंधर्वमेदिनीपतिमानवाः / त्रैलोक्यव्यापिकां कीर्तिमिच्छन्ति धवलां सदा // 256 // * सर्वज्ञो जितरागादि-दोषस्त्रैलोक्यपूजितः। यथास्थित्यर्थवादी च, देवोऽर्हन् परमेश्वरः // 258 // x ध्यातव्योऽयमुपास्योऽयमयं शरणमिष्यताम / अस्यैव प्रतिपत्तव्यं, शासनं चेतनाऽस्ति चेत् // 259 // + वीतरागं स्मरन् योगी वीतरागत्वमश्नुते / - सरागं ध्यायतस्तस्य सरागत्वं तु निश्चितम् // 260 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org