________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित मरने से ही मनुष्य जातीय उत्तम राजकुल में मेरा जन्म हुआ क्रमसे मैंने वहाँ सुन्दर यौवन-अवस्था को प्राप्त किया। जितशत्रु और पद्मावती . मधुराजा ने जितशत्रु राजा के साथ बड़ी धूम-धाम से मेरी शादी की। मेरे पिता के दिये हुए मदोन्मत्त हाथी. सुन्दर सुन्दर घोड़े और मणि मुक्ता के साथ मेरे पति ने नगर में ले जाकर मेरे रहने के लिये सात माल का बड़ा. महल दिया। कुछ दिन पश्चात् मेरे पति ने लक्ष्मीपुर नगर के धन भूपति नाम के राजा की कलावती नाम की कुँवरी से दूसरी शादी कर ली। नवपरिणीता कलावती पर राजा जितशत्रु का प्रेम दिन दिन बढ़ता गया। एक दिन लक्ष्मीपुर के राजा ने रत्न जडित मनोहर सुवर्ण-कुण्डल मेरे पति जितशत्रु को भेंट दिये / बड़े प्रेम के साथ आदर पूर्वक् मैंने उन कुण्डलों को माँगा / परन्तु मुझे न देकर मेरी सपत्नी (सौक ) को ही दिये / प्रायः मनुष्यों का स्वभाव है कि प्राचीन वस्तु अच्छी हो तो भी उसको छोड़ कर नवीन वस्तु को ही चाहते हैं। जैसे कि कौआ पानी से भरे हुओ तालाब को छोड़ कर घड़े का पानी ही पीता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org