________________ विक्रम चरित्र करने से लाख पल्योपम प्रमाण पापों का नाश हो जाता है और तीर्थयात्रा निमित्त मार्ग में जाने से सागरोपम प्रमाण पापसमूह नष्ट हो जाता है। . शुभ भाव से तीर्थयात्रा कर जब प्रसन्नता पूर्वक. श्रीमती. अपने घर लौटी, तब अति कृपण धनश्रेष्ठी ने क्रोध से आँखें लाल करते हुमे कहा-' अरी अधमे ! तू बहुत धन व्यय करके आई है, उसका फल भभी ही तुझे चखाता हूँ।' यह कह कर यम दण्ड के समान दण्ड से उसे इतना मारा कि थोड़ी ही देर में प्राण-पखेरु यम धाम उड़ गये / (प्रथम भव) ____ तीर्थयात्रा के शुभ ध्यान से मरने के कारण मैं चम्पापुर में मधुराजा के यहाँ पद्मावती नाम की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई / जैसा कि शास्त्र में कहा है-'प्राणियों को मरते समय जो आर्त (दुःख) सम्बन्धी ध्यान हो तो तिर्यक् (पशु-पक्षी) आदि योनि में उत्पन्न होना पड़ता है, धर्म-- आत्मादि के शुभ विचार से मरे तो ( देव-गति ) या उत्तम ( मनुष्य-गति) को जीवात्मा पाता है और शुक्ल ध्यान से मोक्ष धाम प्राप्त होता है।' इसलिये बुद्धिमानों को उचित है कि जन्म-मरण रूप बन्धन काटने वाला और सर्व कल्याण को देने वाला धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान करने का प्रयत्न अवश्य करें। शास्त्रकारों के वचनानुसार यात्रादि के शुभ ध्यान में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org