________________ विक्रम चरित्र धार्मिक कार्य आदि में उसका सदुपयोग करते हैं / "+ ऐसा मत समझो कि दान देने से लक्ष्मी एकाएक घट जायगी जैसे कुएँ से पानी निकालने पर पानी बढ़ता ही है और बगीचे आदि से फल-फूल लेने से पुनः आया ही करते हैं एवं गाय आदि दुहने से दूध नहीं घटता है, उसी प्रकार धन का शुभमार्ग में व्यय करते रहने से धन घटता नहीं किन्तु सदा बढ़ता ही रहता है। ___" समुद्र में खारा जल बहुत है वह किस कामका : इसे कोई भी नहीं पी सकता। उससे तो थोडे जल वाला कुआँ ही अच्छा है जिसका जल लोग पेट भर के पीकर संतुष्ट होते हैं। "x इस प्रकार स्त्री का वचन सुनकर 'धन' क्रोध के आवेश में आकर मारने को दौड़ा। तब मृत्यु भय से ‘श्रीमती' पिता के घर जाकर दरिद्रावस्था में कितने ही समय तक रही। क्योंकि इस संसार में मृत्यु के समान दूसरा कोई भय नहीं, दारिद्य के समान कोई शत्रु नहीं, भूख के समान कोई पीडा नहीं तथा जरावस्था के समान और कोई दुःख नहीं। श्रीमती के पिता घर चले जाने से धनश्रेष्ठी भोजन पकाने आदि के कष्ट से बडे दुःखी हुए। तब वह + अधः क्षिपन्ति कंपणाः वित्तं तत्र यियासवः। सन्तश्च गुरुचैत्यादौ तदुच्चैः फलकांक्षिणः // 114 // xअस्ति जलं जलराशौ क्षारं तत् किं विधीयते तेन / लघुरपि वरं स कूपो यत्राऽऽकण्ठं जनः पिबति // 116 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org