________________ विक्रम चरित्र . इस प्रकार प्रार्थना सुनकर ऋषि बोले-' साधुओं का किसी एक स्थान में चिरकाल तक रहना अनुचित कहा गया है / .... भक्ति भावसे महाराज विक्रमादित्य ने पुनः ऋषि से कहा-'आप यदि यहाँ नहीं रहें, तो कृपा करके नगर बाहर रहकर सर्वदा हमारे घर से आहार ले जावें / तब ऋषि ने कहा-'हे राजन् ! साधु महात्माओं को एक घरसे ही आहार लेना योग्य नहीं है। क्यों कि एक घर का आहार लेने से अनेक दोषों की सम्भावना रहती है।' तब राजा ने कहा कि-' हे ऋषिराज ! आप सदैव एक समय तो हमारे घर दोष रहित आहार अवश्य ही लेने आया करें।' इसप्रकार राजा का अत्यन्त भक्ति युक्त आग्रह वचन सुनकर ऋषिने स्वीकार किया / . बादमें महाराजा ऋषिवर को साथ लाकर महल में आये / और रानी से सब वृत्तान्त सुना कर कहा कि-'तुम ऋषिवर को प्रतिदिन निर्दोष आहार देती रहना।' भर्तृहरि का महलमें आहार लेने आना ____ इस प्रकार ऋषिजी रोज राजमहल से निर्दोष आहार लाया करते थे / बादमें किसी एक दिन ऋषिजी आहारार्थ राजमहल में आये / वहाँ महारानी को स्नान करने को तैयार देख कर शीघ्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org