________________ विक्रम चरित्र - इस प्रकार माताकी मृत्यु होने से मातृभक्त महाराजा विक्रमादित्य के हृदय में बहुत ही खेद हुआ / परन्तु कुदरत के आगे किसका चलें सकता है ? फिर अपनी माता का मृत्यु-कार्य समाप्त कर शोकसागर में डूबे हुए महाराज को मन्त्रि आदि श्रेष्ठजन समझाने लगे कि 'हे राजन् ! इस परिवर्तनशील संसार में जो मनुष्य जन्म लेता है उसको एक न एक दिन मृत्यु के मुख में जाना ही पड़ता है। अर्थात् मृत्यु निश्चित है।' कहा भी है: ____“जिसने इस संसार में जन्म लिया है, उसको एक न एक दिन मरना ही निश्चित है / और जो मरा है, उसका जन्म होना भी निश्चित है"।x तात्पर्य यह कि जबतक आत्मा को मोझ नहीं हुआ है तबतक यह जन्ममरण रूप घटमाल की परंपरा चालू ही रहती है। तो इस अनिवार्य विषय के लिये तुम्हारा शोक करना व्यर्थ ही है। और भी कहा है कि 'धम, शोक, भय, भोजन, विफ्याभिलाष, क्लेश और क्रोध ये सब जितने बढ़ाना चाहो उतने बढ़ेंगे और जितने x जातस्य हि ध्रुवं मृत्युर्धवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि // थे किन्तु उसके कण्ठ में नौ 9 रत्नवाला एक बहु मूल्य हार रहता था। उस हारके रत्नों में मुख का प्रतिबिंब दिखाई देने से लोगों में रावण नामसे प्रसिद्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org