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________________ मुनिनिरंजनविजय संयोजित समय प्रजाने हर्षावेश में जयघोषणा कर आकाश मंडल को गुञ्जित किया तथा विविध जातिके फूलों की वर्षा की और माला पहनाई / अवधूत चारों ओर अंगरक्षक, सेना और पौरजनों से सुशोभित होकर अवन्ती की तरफ चले / शुभ मुहूर्त में ह तथा उत्सव के साथ नगर में प्रवेश हुआ / नगर के बड़े बड़े बाजारों में तथा चतुष्पथ, त्रिपथ आदि मुख्य मुख्य मार्ग से राजभवन में सवारी आ पहुंची। अवधूतका राजभवन में आगमन पाठकगण ! रणभूमि में जय लक्ष्मी प्राप्त करने में जैसे राजा का भाग्य ही मुख्य होता है, सैनिकादि सहायक होते हैं, वैसे ही राज्यलक्ष्मी आदि की प्राप्ति भाग्य के अनुसार भाग्यशाली व्यक्ति को होती है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। __यह अवधूत ही विक्रमादित्य है, यह बात वाचकों को छोडकर अवन्ती की सारी प्रजा और प्रधान आदि सभी कर्मचारी वर्ग से गुप्त ही है। - अवन्ती के राज्यभवन में बड़े बड़े सामन्त, अमीर, प्रधान, अमात्यादि, सेठसाहुकार, राज्य के उच्च वर्ग के कर्मचारी आदि तथा अन्य प्रजाजन से राज-सभा भरी हुई है / बीच में रत्नजडित सिंहासन पर एक सुन्दर सुघटित देहवाला व्यक्ति अवधूत के वेषमें विराजमान है / सिंहासन के दाहिनी और बायीं ओर सुन्दर सिंहासनों पर बड़े बडे पराक्रमी सामन्त लोग बैठे हैं। उसके पास और भी कई कुर्सिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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