________________ विक्रम चरित्र ... : अर्थात् अहो ! यह संसार नीरस है / इसका प्रधान कारण स्त्री, चंचललक्ष्मी, रोग तथा भोग, शरीर और घर ये सब है। इस असार संसार में सब वस्तुओं क्षणिक सुख देने वाली हैं तथा दुःख के कारण हैं किन्तु एक वैराग्य ही निर्भय एवं सुखका कारण है। जैसा कहा है भोगे रोगभयं सुखे क्षयभयं, वित्तेऽग्निभूभृद्भयम् , दास्ये स्वामिभयं गुणे खलभयं, वंशे कुयोषिद्भयम् , . माने म्लानिभयं जये रिपुभयं, काये कृतान्ताद् भयम् // सर्व नाम भयं भवेच्च भविनां, वैराग्यमेवाभयम् // अर्थात् मनुष्यों को भोग में रोग का भय, सुख में क्षय का भय, धनादि संग्रह में राजा एवं अग्नि का भय, नौकरी में मालिक का भय, गुण में दुर्जन-खल का भय, वंश में व्यभिचारिणी स्त्री का भय और सम्मान में दोष का भय रहता है, किन्तु संसार में एक वैराग्य ही निर्भय है / उसमें किसीका भय नहीं है। . धन्य हैं, वे पुरुष जो इस असार संसार को छोड़ कर अपने आत्मकल्याण के लिये परमानन्द स्वरूप परमात्मा के ध्यान में मग्न हो उस आनन्द रस को पीते हैं / जैसा कहा है--- धन्यानां गिरिकन्दरे निवसतां ज्योतिः परं ध्यायतामानंदाऽश्रुजलं पिबन्ति शकुनाः निःशंकमंकेशयाः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org