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________________ 1. विभाव द्रव्य व्यञ्जन पर्याय 2. विभाव गुण व्यञ्जन पर्याय। ये दोनों भेद भी संसारी जीव और पुद्गलस्कन्ध में पृथक-पृथक होते हैं। सर्वप्रथम यहाँ जीव और पदगल की स्वभाव व्यञ्जन पर्यायों का व्याख्यान करते हैं - अन्तिम शरीर से कुछ कम जो सिद्ध पर्याय है वह जीव की स्वभाव-द्रव्य-व्यञ्जन पर्याय है। इसी प्रकार अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य इन अनन्त चतुष्टयरूप जीव की. स्वभाव-गुण-व्यञ्जनपर्याय है तथा अविभागी पुद्गल परमाणु की स्वभाव-द्रव्य-व्यञ्जन पर्याय है।' पुद्गलपरमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और परस्पर अविरुद्ध शीत-स्निग्ध, शीत-रुक्ष, उष्ण-स्निग्ध, उष्ण-रुक्ष, स्पर्श के इन चार युगलों में से कोई एक युगल एक काल में एक परमाणु में रहता है। शीत-उष्ण ये दोनों स्पर्श या स्निग्ध-रुक्ष ये दोनों स्पर्श एक काल में एक परमाणु में नहीं रह सकते, क्योंकि ये परस्पर में विरुद्ध हैं। इन गणों की जो चिरकाल स्थायी पर्यायें हैं वे स्वभाव-गण व्यञ्जन पर्यायें हैं। अब विभाव पर्यायों का व्याख्यान करते हैं नर, नारक आदि रूप चार प्रकार की अथवा चौरासी लाख योनिरूप जीव की. . विभाव-द्रव्य-व्यञ्जन पर्यायें हैं। मतिज्ञानादि और चक्षुदर्शनादि जीव की विभाव-गुण-व्यञ्जन पर्यायें हैं। द्वि-अणुकादि स्कन्ध और शब्द-बन्ध आदिक पर्यायें पुद्गल की विभाव-द्रव्य-व्यञ्जन पर्यायें हैं एवं द्वि-अणुकादि स्कन्धों में एक वर्ण से दूसरे वर्णरूप, एक रस से दूसरे रसरूप, एक गन्ध से दूसरे गन्धरूप, एक स्पर्श से दूसरे स्पर्श रूप होने वाला चिरकाल स्थायी परिवर्तन पुद्गल की विभाव-गुण-व्यञ्जन पर्याय तिलोयपण्णत्ति 9/9-10 पञ्चा. गाथा 8 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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