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________________ और दूसरे संघों का मान भंग करने रूप सम्यक्त्व प्रकृति मिथ्यात्व का उपदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि विदेह क्षेत्र में विद्यमान तीर्थकर सीमन्धर स्वामी के समवसरण में जाकर दिव्य ज्ञान प्राप्त करने वाले आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी यदि उपदेश न देते तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे जान पाते और पुष्पदंत,भूतबलि ने जो मार्ग बताया है वही सच्चे धर्म का स्वरूप है। भिल्लक संघ आचार्य देवसेन ने अपनी कृति दर्शनसार में भिल्लक संघ की उत्पत्ति के विषय में अपने विचार प्रकट किए हैं कि विक्रम संवत् 1800 में दक्षिण में विन्ध्यपर्वत के समीप पुष्कर नामक ग्राम में वीरचन्द्र नामक मुनि ने भिल्लक संघ की स्थापना की। जो अपना एक भिन्न संघ बनाकर विभिन्न विवाद उत्पन्न करेगा तथा जैनधर्म का विनाश करेगा। तथा पंचम काल के अंत में सच्चे मुनियों का नाश होगा। केवल एक ही वीरांगज नामक मुनि मूलगुणों का धारी होगा जो अल्पश्रुत का धारक बनकर भगवान के समान लोगों को उपदेश देगा। ___ इस परिच्छेद में पांच संघों का वर्णन किया गया है जिसमें - द्राविड़ संघ की उत्पत्ति आचार्य पूज्यपाद स्वामी के शिष्य वज्रनन्दि ने की। ये वज्रनन्दि आचार्य समयसार आदि प्राभृत ग्रन्थों के ज्ञाता तथा जिनवाणी के सिद्धान्त ग्रन्थों को मानने वाले थे। परन्तु आहारचर्या के विषय में इनकी मान्यता भिन्न थी। ये सदोष आहार ग्रहण करते थे और जब इन्हें सदोष आहार ग्रहण करने से रोका गया तो इन्होंने सदोष आहार को निर्दोष बताने के लिये विपरीत रूप प्रायश्चित्तादि शास्त्रों की रचना की। विक्रम संवत् 526 में अर्थात् 469 ई. में मथुरा नगर में द्राविड़ संघ की उत्पत्ति हुई। काष्ठा संघ की उत्पत्ति आचार्य वीरसेन की परम्परा में पांचवीं पीढ़ी में जिनसेन. मुनि के पश्चात् विनयसेन मुनि आचार्य हुए, इनसे दीक्षित कुमारसेन मुनि हुए जिन्होने संन्यास से भ्रष्ट होकर फिर से दीक्षा नहीं ली। इन्होंने विक्रम संवत् 753 अर्थात् 696 ई. में काष्ठा संघ की उत्पत्ति की। माथुर संघ की उत्पत्ति वि. सं. 953 अर्थात् 896 ई. में मथुरा में हुई। इसकी उत्पत्ति रायसेन मुनि ने की जो पिच्छी रखने का निषेध करते थे। इन संघों के अतिरिक्त 432 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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