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________________ यापनीय संघ यापनीय संघ के विषय में आचार्य देवसेन स्वामी ने अधिक विवेचन न करके मात्र इसकी उत्पत्ति का समय और जनक का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कल्याण नामक नगर में वि.सं. 705 और अन्य प्रति में 205 में श्री कलश नामक श्वेताम्बर साधु से यापनीय संघ की उत्पत्ति हुई। पं. नाथूराम जी प्रेमी ने इस संघ की कुछ विशेष मान्यताओं का वर्णन किया है. जो निम्नलिखित हैं यापनीय संघ की मान्यताएँ ___ 25वीं गाथा में यापनीय संघ का उल्लेख मात्र है, परन्तु उसके सिद्धान्त आदि बिल्कुल नहीं बतलाये हैं। श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में श्रीकलश नाम के आचार्य कोई हुए हैं या नहीं, जिन्होंने यापनीय संघ की स्थापना की, पता नहीं लगा। अन्य ग्रन्थों से पता चलता है कि इस संघ के साधु नग्न रहते थे; परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय को जो दो बातें मान्य नहीं हैं- एक तो स्त्रीमुक्ति और दूसरी केवलिभुक्ति, उन्हें यह मानता था। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आवश्यक, छेदसूत्र, नियुक्ति आदि ग्रन्थों को भी शायद वह मानता था, ऐसा शाकटायन की अमोघवृत्ति के कुछ उदाहरणों से मालूम होता है। आचार्य शाकटायन अथवा पाल्यकीर्ति इसी संघ के आचार्य थे। उन्होंने 'स्त्रीमुक्तिकेवलिभुक्तिसिद्ध' नाम का एक ग्रन्थ बनाया था। यापनीय को 'गोप्यसंघ' भी कहते हैं। आचार्य हरिभद्रकृत षड्दर्शनसमुच्चय की गुणरत्नकृत टीका के चौथे अध्याय की प्रस्तावना में दिगम्बर सम्प्रदाय के (द्रविड संघ को छोड़कर) संघों का इस प्रकार परिचय दिया है-"दिगम्बर नग्न रहते हैं और हाथ में भोजन करते हैं। इनके चार भेद हैं, काष्ठासंघ, मूलसंघ, माथुर और गोप्य। इनमें काष्ठसंघ के साधु चमरी के बालों की और मूलसंघ तथा यापनीय संघ के साधु मोर के पंखों की पिच्छिका रखते हैं; परन्तु माथुर संघ के साधु पिच्छिका बिलकुल ही नहीं रखते हैं। पहले तीन वन्दना करने वाले को 'धर्मवृद्धि' देते हैं और स्त्रीमुक्ति-केवलीभुक्ति तथा वस्त्रसहित मुनि को मुक्ति नहीं मानते हैं। गोप्यसंघ वाले 'धर्मलाभ' कहते हैं और स्त्रीमुक्ति-केवलिभुक्ति को मानते हैं। गोप्य संघ को योपनीय भी कहते हैं। चारों ही संघ के साधु भिक्षाटन में और भोजन में 32 अन्तराय और 14 मलों को टालते हैं। इसके सिवाय शेष आचार में तथा देवगुरु के 430 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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