SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालीन समय में लोगों को इन विषयों की जानकारी अच्छी रही होगी अथवा आचार्य देवसेन स्वामी को इन सभी विषयों को सूत्र रूप में वर्णन करना इष्ट होगा। संवर, निर्जरा और मोक्ष का वर्णन भी इसीप्रकार संक्षेप में किया गया है। आचार्य का स्पष्ट कथन है कि संवर पूर्वक निर्जरा ही मोक्ष का उचित साधन है, अन्य कोई विधि से मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। द्रव्य की परिभाषा बताते हुए कहा गया है कि द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है। उन गुण और पर्यायों के संबंध में जो वर्णन आचार्य देवसेन स्वामी ने किया है, वैसा वर्णन अन्य किसी आचार्य द्वारा प्रणीत ग्रन्थ में नहीं मिलता। द्रव्य के सामान्य और विशेष गुणों का पृथक्- पृथक् वर्णन अपूर्व है। जो गुण सभी द्रव्यों में सामान रूप से पाये जाते हैं वे सामान्य गुण और जो एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक् करते हैं वे विशेष गुण कहलाते हैं। सामान्य गुण दस हैं और विशेष गुण 16 हैं, जो अलग-अलग द्रव्य के अलग-अलग हैं। जीव और पुद्गल द्रव्य में 6-6 और शेष निष्क्रिय धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य के 3-3 विशेष गुण होते हैं। गुणों के विकार को पर्याय कहते हैं अथवा गुणों के परिणमन को पर्याय कहते हैं। इसके मुख्य रूप से दो भेद अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय हैं। इन दोनों के भेद-प्रभेदों का विस्तृत रूप से वर्णन मात्र आलाप पद्धति ग्रन्थ में ही प्राप्त होता है, जो आचार्य देवसेन स्वामी की विशेषता को दर्शाता है। पर्यायों को एक तालिका के रूप में प्रदर्शित करके इस विषय को और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया है। . अनन्त धर्मात्मक तत्त्व की अवधारणा जैनदर्शन में प्रमाण तथा नय के आधार पर की गई है। इन दोनों के द्वारा वस्तु को एक और अनेक रूपों में क्रमशः जाना जा सकता है। प्रमाण तथा नय का सम्बन्ध सापेक्ष है। नय को समझे बिना प्रमाणों के स्वरूप का बोध नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अनेकान्तात्मक पदार्थ का कथन नय और प्रमाण द्वारा ही संभव है। नयवाद जैनदर्शन की अपनी विशिष्ट विचार पद्धति है, जिसमें प्रत्येक वस्तु के विवेचन में नय का उपयोग होता है। प्रमाण नयों का स्वरूप है। अतः प्रमाण के स्वरूप को समझने के लिये पहले नयों का ज्ञान करना आवश्यक है। वस्तुस्वरूप को जानने में प्रवृत्त ज्ञानशक्ति जब श्रुतज्ञानात्मक उपयोग वस्तु को परस्पर 417 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy