________________ इस प्रकार इन तीनों देवों की मिथ्या अवधारणा निश्चित रूप से संसारी जीवों को भ्रमित करने वाली है और उनमें अंधविश्वास एवं अकर्मण्यता की वृद्धि करती है। अतः अपना हित चाहने वाले को सच्चे वीतरागी देव, सच्चे शास्त्र और निर्लोभी निष्परिग्रही, जितेन्द्रिय गुरु की शरण में जाकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिये। 384 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org