________________ होती हैं तो मोक्षप्राप्ति कैसे हो सकती है? अतः मोक्षप्राप्ति उत्तम कुल में उत्पन्न हुए चरमशरीरी महापुरुषों को होती है। वह भी निर्ग्रन्थ मुद्रा धारण कर उत्तम ध्यान करने वाले पुरुषों को ही होती है। अब आगे बतलाते हैं गृहस्थावस्था में घर में रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। उत्तम कुल में उत्पन्न होने पर भी गृहस्थी सम्बन्धी व्यापारादि में लीन रहने से आर्त्त-रौद्र ध्यान तो लगे ही रहते हैं और कोई सम्यग्दृष्टि भी हो परन्तु बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रहों से सहित और इन्द्रियों के विषयों का सेवन करता है तो मोक्ष की प्राप्ति असंभव है, क्योंकि मोक्षप्राप्ति में नि:संग और निर्विकल्प अवस्था ही साधन है। यदि कोई ऐसा कहे कि सग्रन्थ अवस्था में ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है तो फिर तीर्थङ्कर आदि महापुरुष समस्त परिग्रहों का त्याग करके एकान्त वन में जाकर तपश्चरण क्यों करते हैं? इससे यह सिद्ध होता है कि सग्रन्थ अवस्था में कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। अब आगे केवली भगवान् के कवलाहार का निषेध करते हैं। इसका विशद वर्णन हम पिछले अध्याय में कर चुके हैं। यहाँ संक्षेप से यही कहा जाता है कि क्षुधा वेदनीय मोहनीय कर्म के रहते ही भूख उत्पन्न करा सकती है और वे मोहनीय कर्म का सम्पर्ण रूप से नाश कर चके हैं और उनके 18 दोषों का भी नाश हो चका है. इसलिये केवली भगवान् के कवलाहार कदापि संभव नहीं है। इस प्रकार संशय मिथ्यात्व का स्वरूप वर्णन किया। अब आगे अज्ञान मिथ्यात्व का कारण और उसके दोषों का वर्णन करते हैं - भगवान् पार्श्वनाथ के समय में मस्करीपूरण नामक मुनि थे। वे भगवान् महावीर स्वामी के समवसरण में आये थे परन्तु गणधर के अभाव में दिव्यध्वनि नहीं हो रही थी। जब इन्द्रभूति गौतम आये और दीक्षित हुए तो गणधर के सद्भाव होने से दिव्यध्वनि खिरने लगी, यह सब देखकर मस्करी पूरण बाहर निकल गये और दिव्यध्वनि भी नहीं सुनी। समवसरण के बाहर आकर उसने लोगों से कहा कि देखो मैं ग्यारह अंगों का पाठी हूँ, मैं समवसरण में बैठा रहा तथापि भगवान् की दिव्यध्वनि प्रगट नहीं हुई। जब उनके भा. सं. ग. 102 378 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org