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________________ उसमें जघन्य, मध्यम (अजघन्योत्कृष्ट), उत्कृष्ट के भेद से देशावधि तीन प्रकार का है। जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से परमावधि भी तीन प्रकार का है। अविकल्प होने से सर्वावधि एक प्रकार का है। देशावधि का जघन्य क्षेत्र उत्सेधांगुल के असंख्यात भाग मात्र है, उत्कृष्ट क्षेत्र सर्वलोक है। मध्यम क्षेत्र जघन्य और उत्कृष्ट के बीच का असंख्यात प्रकार का है। परमावधि का जघन्य क्षेत्र एक प्रदेश अधिक सर्वलोक प्रमाण है और उत्कृष्ट क्षेत्र असंख्यात लोकप्रमाण है, मध्य के विकल्प जघन्योत्कृष्ट क्षेत्र हैं। परमावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र से बाहर असंख्यात लोक क्षेत्र सर्वावधि का है। . वर्धमान, हीयमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, अप्रतिपाती और प्रतिपाती के भेद से देशावधि आठ प्रकार का है। हीयमान और प्रतिपाती के बिना शेष छह भेद परमावधि के हैं। अवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अप्रतिपाती ये चार भेद सर्वावधि के हैं। अनुगामी आदि छह भेदों के लक्षण पहले कह चुके हैं। प्रतिपाती - 'प्रतिपातीति विनाशी विद्युत्प्रकाशवत्" प्रतिपाती बिजली की चमक के समान विनाशशील है अर्थात् छूटने वाला है। अप्रतिपाती - 'तविपरीतोऽप्रतिपाती' अप्रतिपाती उससे विपरीत अर्थात् केवलज्ञान पर्यन्त नहीं छूटने वाला है। तिर्यञ्चों के उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र असंख्यात द्वीप, समुद्र, काल असंख्यात वर्ष और तेजः शरीर प्रमाण द्रव्य है। तिर्यञ्चों के केवल देशावधि ही होता है। मनुष्यों की उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र असंख्यात द्वीप समुद्र, काल असंख्यात वर्ष और द्रव्य कार्माण शरीर प्रमाण है। यह उत्कृष्ट देशावधि संयत मनुष्यों के ही होती है, असंयतों के नहीं। शेष पहले कहा जा चुका है। मनःपर्ययज्ञान - द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा लिये हुए परकीय मनोगत मन, वचन, कायगत पदार्थों को जो जानता है. वह मन:पर्यय ज्ञान है। ___ आचार्य उमास्वामी महाराज ने मनःपर्ययज्ञान के दो भेद कहे हैं - ऋजुमति, विपुलमति।' आचार्य देवसेन स्वामी ने भी मन:पर्ययज्ञान के दो भेद स्वीकार किये हैं तत्त्वार्थवार्तिक 1/22/4 ऋजुविपुलमती मन:पर्ययः! त. सू. 1/23 31 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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