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________________ है? जीव इस निमित्त को कैसे परिणमन करता है? उदय में आये हुए कर्म किस प्रकार से शुभ और अशुभ फल देते हैं? इत्यादि कर्मों की विविध स्थितियों का विचार करके साधक विपाक विचय धर्म्यध्यान का आश्रय लेकर श्रद्धापूर्वक आत्मोपलब्धि रूप इस ध्यान का फल प्राप्त करता है। यह ध्यान 5-7 गणस्थानों में होता है। 4. संस्थान विचय धर्म्य ध्यान - संस्थान का शाब्दिक अर्थ 'आकार' है। तीनों लोकों ऊर्ध्व, मध्य और अधोलोक के आकार, अस्तित्व, प्रमाणादि का इसमें भरे हुए पदार्थों का. उनकी पर्यायों का और उन सबके आकारों का चिन्तन करना संस्थान विचय धर्म्य ध्यान कहलाता है।' यहाँ आचार्य का तात्पर्य यह है कि - यद्यपि यह लोक अनादिकाल से बिना किसी ह्रास अथवा वृद्धि के अस्तित्ववान् है तथापि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त है। अनन्त आकाश के मध्य में अनादि, अकृत्रिम, अप्राकृतिक भाग जो है वह लोक कहा जाता है, जिसमें जीवादि छहों द्रव्य देखे जाते हैं। लोक आकाश की तुलना में क्षुद्र प्रमाण वाला है। इस लोक के चारों ओर अनन्त अलोकाकाश है। लोक के अन्तर्गत आकाश का मनुष्याकार भाग गर्भित है। इसके चारों ओर तीन वात वलय वेष्टित हैं। इसके ऊर्ध्व लोक से अधोलोक तक मध्य में एक राजु की चौड़ाई वाली और कुछ कम तेरह राजु प्रमाण लम्बी त्रस नाडी है। त्रस जीव इसके बाहर नहीं पाये जाते हैं। इसके बाहर का जो क्षेत्र है जिसमें मात्र एकेन्द्रिय स्थावर पाये जाते हैं उसको निस्कुट क्षेत्र कहते हैं। अर्थात् स्थावर जीव तीनों लोकों में पाये जाते हैं। आचार्य अकलंक स्वामी कहते हैं कि - जहाँ पुण्य पाप के फल में सुख-दुःख देखे जाते हैं वह लोक कहलाता है। इस व्युत्पत्ति से लोक का अर्थ आत्मा स्वीकार किया जाता है। ऐसे तीनों लोकों का यथार्थ चिन्तन करना संस्थान विचय धर्म्य ध्यान कहा जाता है। इसके द्वारा लोक के स्वरूप को जानकर आत्मकल्याण के लिये उद्यम प्रारम्भ किया जाता है। अनुप्रेक्षादि के द्वारा भी यह लोक और इसमें स्थित जीवों की अवस्थाओं का ध्यान किया जाता है। यह धर्म्यध्यान 6-7 गुणस्थानों में होता है। आचार्य शुभचन्द्र और आचार्य वसुनन्दि महाराज आदि ने संस्थान विचय धर्म्य ध्यान के चार भेद स्वीकार किये हैं जो इस प्रकार हैं - पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और 2 भा. सं. गा. 370 त. वा. 5/12/10 259 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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