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________________ (iii) चौर्यानन्द रौद्रध्यान - चोरी करके अथवा चोरी के उपाय बताकर उसमें प्रसन्नता का अनुभव करना चौर्यानन्द रौद्रध्यान कहलाता है। ऐसे जीवों में चोरी के उपायों के उपदेश देने की बहुलता, चातुर्य, चोरी करने में तत्परता इत्यादि सहज ही होते हैं। इसमें जीव क्रोध और लोभ के वश से अन्य लोगों की वस्तुओं को चुराने में उद्यत रहता है और उसमें बड़ी प्रसन्नता का अनुभव करता है। बिना थके चोरी की योजनायें बनाने तत्पर चित्त और हर्षित होता रहता है। ऐसा चौर्यानन्द रौद्रध्यान अतिशय रूप से निन्दा का पात्र होता है। (iv) विषयसंरक्षणानन्द रौद्रध्यान - चेतन और अचेतन रूप बाह्य परिग्रह में 'यह मेरा है' इस प्रकार की ममत्व भावना से परिग्रह का कोई अपहरण न कर ले इस भय से उसकी रक्षा करने के लिये बार-बार जो चिन्तन किया करता है और वह उनका जो रक्षण करने में आनन्द का अनुभव करना है उसे विषयसंरक्षणानन्द रौद्रध्यान कहते हैं। उसी कारण से यह जीव क्रूर परिणाम से युक्त होता हुआ तीक्ष्ण अस्त्र और शस्त्रों के द्वारा शत्रुओं को मार करके उनके ही ऐश्वर्य, संपदा को भोगने की इच्छा अपने मन में संजोये रखते हैं। कामभोग के साधन और धनादिक का संरक्षण और उनकी वृद्धि करने की लालसा एवं व्यापारादि तथा धनार्जन के साधनों के लाभ, वृद्धि में ही अभिलाषा रखते हैं। यह रौद्रध्यान जीवों के मोक्षलक्ष्मी को उत्पन्न करने वाले धर्म रूपी वृक्ष को क्षणमात्र में ही नष्ट कर देता है, इसलिये यह ध्यान भी अशुभ और अप्रशस्त होता है। जहाँ कुटिल भावों का ही चिन्तन होता है। स्वभाव से ही जीव सभी पापों में उद्यत होता - है। कुध्यान में लीन होता हुआ अन्य प्राणियों को पीड़ित करने के लिये उपायों का चिन्तन करने में तत्पर रहता है। फलतः यह स्वयं ही दुःख से पीडित रहता है। रौद्रध्यान सहित जीव इस लोक में और परलोक में भय से आतंकित होता रहता है और अनुकम्पाविहीन होकर नीच कर्मों में निर्लज्ज होकर पाप में आनन्द मानने वाला होता है।' ज्ञाना. 26/24-28 ज्ञाना. 26/37, आवश्यकाध्ययनम् 4 254 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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