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________________ प्रथम परिच्छेद : सत् का स्वरूप सत् का स्वरूप बताते हुए आ. कुन्दकुन्द स्वामी लिखते हैं कि सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरुवा अणंतपज्जाया। भंगुष्पादधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का॥' अर्थात् अस्तिस्वरूप एक होता है, समस्त पदार्थों में स्थित है, नाना प्रकार के स्वरूपों से संयुक्त है, अनन्त हैं परिणाम जिसमें ऐसी है उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप है, प्रतिपक्ष संयुक्त है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक पदार्थ में अस्तित्व रूप में सत विद्यमान रहता ही है, क्योंकि इस लोक में समस्त पदार्थों में अस्तिस्वरूप अनिवार्य रूप से प्राप्त होता है। बिना अस्तिस्वरूप के कोई भी पदार्थ ठहर नहीं सकता है। इसी सन्दर्भ में आ. कुन्दकुन्दस्वामी प्रवचनसार में लिखते हैं कि - सभी पदार्थों के किसी पर्याय से उत्पाद और किसी पर्याय से विनाश होता है तथा किसी पर्याय से सभी पदार्थ सद्भूत हैं, ध्रुव हैं। सत् का स्वरूप प्ररूपित करते हुए आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी लिखते हैं कि इह विविहलक्खाणं लक्खणमेगं सदिति सव्वगय। ___ उवदिसदा खलु धम्मं जिणवरवसहेण पण्णत्तं॥' अर्थात् जिनवर वृषभदेव ने धर्म का वास्तविक उपदेश करते हुए कहा है कि विविध लक्षण वाले द्रव्यों का 'सत्' ऐसा सर्वगत एक लक्षण कहा है। यहां आचार्य का आशय यह है कि सर्वगत एक लक्षण से तात्पर्य समस्त भूमण्डल पर एक ही लक्षण है सत् का। यदि ऐसा न हो तो सभी लोग अपने मत के अनुसार अपने-अपने लक्षण निरूपित करने लगेंगे। और भी आगे कहते हैं कि द्रव्य स्वभाव से सिद्ध और 'सत्' है, ऐसा जिनेन्द्र देव ने परमार्थ से कहा है। इस प्रकार आगम से सिद्ध है, जो इसे नहीं मानता वह वास्तव में परसमय है। यहां आचार्य का आशय है कि वास्तव में द्रव्यों से पञ्चास्तिकाय गाथा-8 उप्पादो ण विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठाजादस्स। पज्जाएण दु केणवि अट्ठो खलु होदि सब्भूदो।।।8।। प्रवचनसार गा. 97 18 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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