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________________ उपनय के तीन भेद हैं-सद्भूत, असद्भूत एवं उपचरित। सद्भूत के 2, असद्भूत के 3 और उपचरित के तीन, इस प्रकार नय के भेद-प्रभेदों का कथन कर द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक नयों की अपेक्षा वस्तु-विवेचन है। र आलापपद्धति - यह संस्कृत गद्य में रचित छोटी सी रचना है। इस ग्रंथ में गण. पर्याय, स्वभाव, प्रमाण, नय, गुणव्युत्पत्ति, पर्याय व्युत्पत्ति, स्वभाव व्युत्पत्ति, एकान्त में दोष, नय योजना, प्रमाणकथन, नयलक्षण और भेद, निक्षेप व्युत्पत्ति, नयों के भेदों की व्युत्पत्ति, अध्यात्मनय का उदाहरण सहित वर्णन किया है। आरम्भ में वचन पद्धति को ही आलापपद्धति कहा है तथा इस ग्रन्थ की रचना नयचक्र के आधार से हुई है ऐसा कथन भी किया है। समकालीन आचार्य आचार्य देवसेन स्वामी दसवीं शताब्दी के महान् आचार्य हुए हैं। उनके समय में अनेक समकालीन आचार्य हुए, परन्तु उनमें से कुछ आचार्यों का नामोल्लेख ही यहां पर कर रहा हूँ। जो उनके समय से कुछ वर्ष पहले, कुछ समय बाद में हुए उनको ही समकालीन मानकर उनका संक्षेप से नामोल्लेख कर रहा हूँ। उनमें आचार्य वसुनन्दि जिन्होंने वृहत्काय श्रावकाचार की रचना की है, अभयदेव सूरि जिन्होंने वादमहार्णव नामक ग्रन्थ की रचना की है, आचार्य अमितगति : प्रथम जिन्होंने योगसार नामक ग्रन्थ रचा, आचार्य माणिक्यनन्दि जिन्होंने जैन न्याय का आद्य सूत्रग्रन्थ परीक्षामुख की रचना की। आचार्य प्रभाचन्द्र जिन्होंने परीक्षामुख की टीका प्रमेयकमलमार्तण्ड की रचना की, सारसमुच्चय नामक ग्रन्थ के रचयिता आचार्य कुलचन्द्र, आचार्य पद्मकीर्ति जिन्होंने पार्श्वपुराण नामक कथाग्रन्थ की रचना की, आचार्य वीरनन्दि द्वितीय ने चन्द्रप्रभ चरित्र की रचना की, आचार्य सोमदेव सूरि जिन्होंने नीतिवाक्यामृत, यशस्तिलक चम्पू, युक्ति चिन्तामणि और उपासकाध्ययन आदि ग्रन्थों की रचना की। इनके अलावा आचार्य अनन्तकीर्ति प्रथम, आचार्य माघनन्दि द्वितीय आदि आचार्य प्रमुख 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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