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________________ *क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट 66 सागर x 2 में अन्तर्मुहूर्त कम है। * क्षायिक सम्यक्त्व का जघन्य काल संसारापेक्षा अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट काल 2 पूर्व कोटि में 8 वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम 33 सागर है। * नरक गति में चतुर्थगुणस्थान का उत्कृष्टकाल 2 अन्तर्मुहूर्त कम 33 सागर है। * तिर्यञ्चगति में क्षायिक सम्यक्त्व की अपेक्षा उत्कृष्ट काल 3 पल्य, क्षयोपशम की 5 अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि (सम्मूर्च्छन जन्म), उपशम की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त है। * मनुष्यगति में क्षायिक की अपेक्षा साधिक 3 पल्य, उपशम की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त, क्षयोपशम की अपेक्षा 24 दिन कम 3 पल्य है। * सम्यग्दर्शन के बाद सृष्टि तो वही रहती है, दृष्टि बदल जाती है। 5. विरताविरत गुणस्थान इस गुणस्थान का नाम 'संजदासंजदा' है। इस गुणस्थान को 'विरयाविरओ' भी कहते हैं। यहाँ संजद और विरय शब्द अर्थान्तर नहीं हैं अर्थात् दोनों एकार्थवाची हैं। संयतासंयत अथवा विरताविरत अथवा संयमासंयम का स्वरूप उल्लिखित करते हुए आचार्य कहते हैं कि जो जीव एकमात्र जिन भगवान् में अपनी श्रद्धा रखते हुए त्रस जीवों के घात से विरत है और इन्द्रिय विषयों से एवं स्थावर जीवों के घात से विरक्त नहीं है वह जीव प्रतिसमय विरताविरत कहलाता है। इसी स्वरूप को और स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि - भावों से स्थावर वध और पाँचों इन्द्रियों के विषयसम्बन्धी दोषों से विरत नहीं होने किन्तु त्रस वध से विरत होने को संयमासंयम कहते हैं।' पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों से संयुक्त होना विशिष्ट संयमासंयम है। उसके धारक और असंख्यात गुणश्रेणीरूप निर्जरा के द्वारा कर्मों के झाड़ने वाले ऐसे सम्यग्दृष्टि पं. सं. प्रा. गा. 1/13, भा. सं. गा. 351, गो. जी. गा. 31 पं. सं. प्रा. 1/134 143 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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