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________________ से सप्तम गुणस्थान तक ही होते हैं। इसके चल-मलादि दोष होने से क्षपक और उपशम श्रेणी में चढ़ना नहीं बनता।' सम्यग्दर्शन के दस भेद सम्यग्दर्शन के अन्य भेदों में आचार्यों ने दस भेद भी स्वीकार किये हैं। उनके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं 1. आज्ञासम्यक्त्व - दर्शन मोह के उपशान्त होने से ग्रन्थश्रवण के बिना केवल वीतराग भगवान् की आज्ञा से ही जो तत्त्वश्रद्धान उत्पन्न होता है वह आज्ञासम्यक्त्व कहलाता है। मार्गसम्यक्त्व - दर्शनमोह का उपशान्त होने से ग्रन्थश्रवण के बिना जो कल्याणकारी अपरिग्रही मोक्षमार्ग का श्रद्धान होता है वह मार्गसम्यक्त्व कहलाता उपदेशसम्यक्त्व - तीर्थङ्करादि तिरेसठ शलाका पुरुषों के शुभचरित्र के उपदेश से जो तत्त्वश्रद्धान उत्पन्न होता है उसे उपदेशसम्यक्त्व कहते हैं। सूत्रसम्यक्त्व - मुनि आदि दीक्षा-चारित्रादि के निरूपक आचारांगादि सूत्रों को सुनकर जो श्रद्धान होता है उसे सूत्र सम्यक्त्वकहते हैं। 5. बीजसम्यक्त्व - जिन जीवादि पदार्थों के समूह अथवा गणितादि विषयों का ज्ञान दुर्लभ है, उनका किन्हीं बीजपदों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वाले भव्य जीव के जो दर्शन मोहनीय के असाधारण उपशम वश तत्त्वश्रद्धान होता है उसे बीजसम्यक्त्व कहते हैं। संक्षेपसम्यक्त्व - जो भव्यजीवों को पदार्थों के स्वरूप को संक्षेप से ही जान करके तत्त्वश्रद्धान होता है वह संक्षेपसम्यक्त्व कहलाता है। 7. विस्तारसम्यक्त्व - अंग, पूर्व के विषय, प्रमाण, नय आदि के विस्तार कथन से जो श्रद्धान उत्पन्न होता है उसे विस्तारसम्यक्त्व कहते हैं। ध. पु. 1, पृ. 357 रा. वा. 3/36/2, आ. अनु. 12-14, द. पा. टी. 12/12/20, अन. ध. 2/62 139 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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