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________________ स्वामी भी प्ररूपित करते हैं कि विपरीताभिनिवेश मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन दोनों के निमित्त से होता है, इसीलिये सासादन गुणस्थान में अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय तो होता ही है तो वहाँ अज्ञान मानना संभव है।' प्रायः सर्वत्र इस गुणस्थान का नाम निर्देश करते समय 'सासन' शब्द का ही प्रयोग किया है, किन्तु अर्थ करते समय ‘सासादन' शब्द को दृष्टि में रखा है। दोनों ही शब्द निरुक्ति सिद्ध हैं। असन का अर्थ होता है नीचे को गिरना और आसादन का अर्थ होता है विराधना, क्योंकि जीव मिथ्यात्व की तरफ नीचे को गिरता है और यह कार्य सयक्त्व की विराधना से होता है। अतएव दोनों ही अर्थ संगत हैं। ____ अनन्तानुबन्धी कषाय चारित्र मोहनीय कर्म की प्रकृति है लेकिन यह सम्यक्त्व का भी घात करने का काम करती है। यह द्विस्वभावी कर्म प्रकृति है, सम्यक्त्व और चारित्र दोनों की नाशक है। अतः दर्शन मोहनीय के उपशम काल में ही इनमें से किसी का भी उदय आ जाने से सम्यक्त्व तो नष्ट हो जाता है परन्तु मिथ्यात्वप्रकति का उदय न होने से प्रथम गुणस्थान को प्राप्त नहीं हो पाता। यही कारण है कि प्रथम गुणस्थान में इस गुणस्थान का अन्तर्भाव नहीं हो सकता, इसीलिये इस गुणस्थान का पृथक् निर्देश किया गया। सासादन गुणस्थान की विशेषताएँ * सासादन गुणस्थान अनन्तानुबन्धी के तीव्र उदय से होता है। * दर्शन मोहनीय की किसी भी प्रकृति का उदय न होने से इस गुणस्थान में पारिणामिक भाव बतलाया है। सासादन सम्यक्त्वी मरणकर अधोगति को प्राप्त नहीं होता है। * एक जीव की अपेक्षा सासादन सम्यक्त्व का स्पर्शन 7 राजु है। इस गुणस्थान का जघन्य काल 1 समय एवं उत्कृष्ट काल 6 आवली प्रमाण है। * नाना जीवों की अपेक्षा से इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। ध. 1/11 116/861/3 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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