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________________ * पहली पृथ्वी से लेकर छठवीं पृथ्वी तक जीव वहाँ से सम्यक्त्व के साथ भी निकल सकता है, परन्तु सातवें नरक का जीव मिथ्यात्व के साथ ही निकलता है। * कर्मभूमिज तिर्यञ्चों में, कुभोग भूमियों में, भवनत्रिकों में, पाँचवें एवं छठवें काल में उत्पन्न होने वाले जीव, निर्वृत्यपर्याप्तक में उत्पन्न होने वाले जीव निर्वत्यपर्याप्तक अवस्था में मिथ्यात्व सहित ही होते हैं। सौधर्म स्वर्ग से लेकर 9वें ग्रैवेयक पर्यन्त कोई भी जीव मिथ्यात्व के साथ उत्पन्न हो सकता है। * कर्मभूमि में जन्मे हुए मिथ्यादृष्टि मनुष्य 8 वर्ष अन्तर्मुहूर्त बाद ही सम्यक्त्व प्राप्ति के योग्य होते हैं। सम्मूर्च्छन सैनी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अन्तर्मुहुर्त बाद एवं गर्भज सैनी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च यथायोग्य 2,3,4,6,8,10 आदि माह बाद सम्यग्दर्शन प्राप्ति के योग्य होते हैं। * भोगभूमि सम्बन्धी मनुष्य तथा तिर्यञ्च क्रमशः 49 दिन, 35 दिन एवं 21 दिन ... बाद सम्यग्दर्शन प्राप्ति के योग्य हो जाते हैं। * मिथ्यादृष्टि इतर निगोदिया एवं नित्य निगोदिया जीव अनन्त हैं। * इतरनिगोद में रहने वाले सादि मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त हैं। * जिस भव्य जीव ने त्रस पर्याय की प्राप्ति कर ली वह नियम से मोक्ष जायेगा ही जायेगा। इतर निगोद का जघन्यकाल क्षुद्रभव प्रमाण तथा उत्कृष्ट काल ढ़ाई पुद्गल परावर्तन है। यह उत्कृष्ट काल अनादि मिथ्यादृष्टि जीव की अपेक्षा से है। * सादि मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा इतर निगोद का उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्द्धपुद्गल परावर्तन है। * सातिशय मिथ्यादृष्टि जीव जब अपूर्वकरण को प्राप्त होता हैं तब स्थितिकाण्डक घात, अनुभाग काण्डक घात, गुणश्रेणी निर्जरा, गुणसंक्रमण एवं स्थिति बंधापसरण ये पाँच कार्य करता है। 115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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