SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिथ्यादर्शन के तीन भेद संशय, अभिगृहीत और अनभिगृहीत' हैं एवं अनादि अनन्त, अनादि सान्त और सादि सान्त के भेद से भी मिथ्यात्व तीन प्रकार का है। मिथ्यात्व के पाँच भेद एकान्त, विनय, विपरीत, संशय और अज्ञान हैं। जितने भी वचनमार्ग हैं उतने ही नयवाद हैं और जितने भी नयवाद हैं उतने ही परसमय होते हैं।' इस वचन के अनुसार मिथ्यात्व के पाँच ही भेद हैं, यह कोई नियम नहीं समझना चाहिये किन्त मिथ्यात्व पाँच प्रकार का है यह कहना उपलक्षण मात्र समझना चाहिए। जैन वाङमय में 363 मिथ्यामत बताये गये हैं। अत: मिथ्यात्व के अन्य भी संख्यात विकल्प होते हैं। इसके परिणामों की दृष्टि से असंख्यात और अणुभाग की दृष्टि से अनन्त भेद भी होते हैं। .. अब यहाँ मिथ्यात्व के उन दो भेदों के स्वरूप का विवेचन करते हैं जिनका विवेचन आचार्य देवसेन स्वामी जो कि भावसंग्रह के रचयिता हैं, के द्वारा नहीं किया गया है, क्योंकि मिथ्यात्व के भेदों की श्रृंखला में इनका स्वरूप परिचय भी अपेक्षित महसूस होता है। इनमें से प्रथम अगृहीत मिथ्यात्व का स्वरूप इस प्रकार है 'जो परोपदेश के बिना मिथ्यात्व कर्म के उदय से जीवादि पदार्थों का अश्रद्धानरूप भाव होता है वह अगृहीत अथवा नैसर्गिक मिथ्यात्व है तथा परोपदेश के निमित्त से होने वाला मिथ्यात्व गृहीत अथवा अधिगमज मिथ्यात्व कहलाता है। गृहीत मिथ्यात्व के चार भेद हैं - क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानी और वैनयिक। इनके भी प्रभेद इस प्रकार हैं - क्रियावादियों के एक सौ अस्सी, अक्रियावादियों के चौरासी, अज्ञानियों के सड़सठ और वैनयिकों के बत्तीस हैं। यह सब कुल 363 भेद हो जाते हैं। इन भेदों को आचार्य एकान्त मिथ्यात्व के अन्तर्गत भी स्वीकार करते हैं जो कि मिथ्यात्व के अन्य पाँच भेद जो विपरीत आदि हैं जिनका वर्णन आगे किया जायेगा, क्योंकि इन 363 मतों भ. आ. मू. 56/180, ध. 1/1,19 गा. 107/163 बा. अ. भा. 48, स. सि. 8/1/375/3, रा. वा. 8/1/28, ध. 8/3, 6/2, गो. जी. का. गा. 15, त. सा. 5/3, द. सा. 5, द्र. सं. टी. 30/89, भा. सं. गा. 16 ध. 1/1,19 गा. 105, टीका 162/5 स. सि. 8/1, भ. आ. टीका 56/180/22, प. ध. उ. 1049-50, रा. वा. 8/1/7-8 109 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy