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________________ विविध और परस्पर विरोध रखने वाली मान्यताओं का विपरीत तथा विधायक विचारश्रेणिकों का समन्वय करके सत्य की शोध करना, दार्शनिक क्लेशों को मिटाना, सभी धर्मों एवं दार्शनिक सिद्धान्तों को मोतियों की माला के समान एक ही सूत्र में पिरो देना, यही स्याद्वाद की महत्ता है। अन्त में सभी दार्शनिकों के दार्शनिक सिद्धान्तों की उन्होंने अपने ग्रंथों में विवेचना की है। यशोविजयजी अपने आप में एक अद्भुत एवं अप्रतिम उपाध्याय थे। डनका व्यक्तित्व वाङ्मय के विशाल कलेवर में कृतज्ञ है। उपाध्यायजी ने संयमी जीवन के ज्ञान, गुण, सुवर्ण, सुगंध या सुमेलश्रद्धा जैन दर्शन के प्रति अटूट निर्मल श्रद्धा, सच्चा चारित्र, अनुपम विद्वत्ता-ये सभी गुणों के बाद भी हृदय की सरलता, विनम्र शांतप्रवृत्ति, गुणानुराग इत्यादि अनेक उनके जीवन की विशिष्टता थी। उनकी कृतियाँ उनके जीवन चरित्र के यशस्वी, अमरत्व का परिचय करा देती हैं। उनका वैदुष्य विशाल, विवेक सम्पन्न, विगतमय, विद्याप्रवाद से परिपूर्ण रहा। वे युगों-युगों तक सदैव अविस्मरणीय रहेंगे। जैन दर्शन में स्याद्वाद को, जैन सिद्धान्तों की तत्त्व व्यवस्था को, उनके सम्पूर्ण सुसंवादी शास्त्रज्ञान को उपाध्यायजी ने अपनी नव्यन्यायशैली में आलेखित किया है, वो वास्तव में अमृत है। उनके एक-एक न्यायग्रंथों का जब भी मनन-चिंतन, परशीलन करने में आता है तब उनके सतत् अभ्यासी, प्रज्ञाशील, बुद्धिमान को भी पुनः-पुनः उनके ग्रंथों की पंक्ति में कुछ नया ही रहस्य तत्त्व जानने को मिलता है। हरिभद्रसूरि रचित शास्त्रवार्ता समुच्चय की स्याद्वाद कल्पलता नामक उपाध्यायजी रचित टीका जैन दर्शन के पदार्थों को नव्यन्यायशैली से प्रतिपादित करने वाली अद्भुत साहित्यकृति है। इस कृति में उनका स्व-पर दर्शनशास्त्रों के विषयों का अगाध पाण्डित्य पद-पद में व्यक्त होता देखने को मिलता है। अपने / अद्भुत व्यक्तित्व से वाङ्मय को विशाल रूप देने में महाविद्यावान सिद्धहस्त एक सफल टीकाकार हुए। उपाध्यायजी के दार्शनिक चिंतन का वैशिष्ट्य इतना विपुल एवं विशेष विद्यमान है, जिसको तत्त्वमीमांसा एवं कर्ममीमांसा से आत्मसात् किया जा सकता है, स्याद्वाद से सुशोभित देखा जा सकता है। सिद्ध पद को प्राप्त करने का सहजमार्ग, सरल उपाय समुपलब्ध हो सकता है। ये सारी बातें ज्ञान बल से स्व-पर-प्रकाशक बन सकती हैं। रहस्यांकित पदों एवं न्याय के क्षेत्र में योगदान उपाध्यायजी का अनूठा पक्ष रहा है। __इस प्रकार ज्ञान के वैशिष्ट्य से जिनका वैदुष्य युगों-युगों तक आदर्शता, अमरता, शाश्वतता की कथा करता रहेगा। अन्य दार्शनिकों की दृष्टि से उपाध्यायजी का दार्शनिक ज्ञान अपूर्व, अद्वितीय एवं अविस्मरणीय है। उन्होंने आत्मा, योग, मोक्ष, कर्म, प्रमाण, सर्वज्ञ, न्याय जैसे असामान्य विषयों पर अपनी सिद्धहस्त लेखनी चलाकर विद्वद् जगत् में नाम प्राप्त किया है, जो युगों-युगों तक यशस्वी एवं जीवन्त रहेगा। इस प्रकार उन्होंने आजीवन अपना अमूल्य समय शास्त्रों, आगमों एवं ज्ञानराशि के क्षेत्र में अर्पित कर वाङ्मय को विशाल एवं विराट रूप दिया, ऐसा कहना उपयुक्त होगा। ऐसे अनन्त उपकारों की अमीवर्षा हम सब पर बरसाने वाले, समस्त संस्कार से संस्कारित साहित्य में विशेष योगदान देने वाले 65 वर्ष के संयम पर्याय में इतना अविचल परिश्रम करके संसार में यशस्वी नाम पाने वाले एवं अमर होने वाले साहित्य के स्वामी उपाध्यायजी के चरणों में शत्-शत् वंदन सह यह ग्रंथ समर्पित है। 586 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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