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________________ आधार किसी व्यक्ति के लिए उसकी विश्वात्मक सत्ता की अनिर्दिष्ट या निर्विशेष एकता या परमात्मतत्त्व की प्रत्यक्ष एवं अनिर्वचनीय अनुभूति में निहित रहा करता है और जिसके अनुसार किये जाने वाले उसमें व्यवहार का स्वरूप स्वभावतः विश्वजनीन एवं विकासोन्मुख भी हो सकता है। इस व्याख्या के अनुसार रहस्यवाद एक जीवन-दर्शन बनता है, जो निर्विशेष एकता की अनुभूति से उसमें व्यवहार के विकासोन्मुख स्वरूप का ख्याल कराती है। ___डॉ. आर.डी. रानाडे के अनुसार, "रहस्यवाद मन की एक ऐसी प्रवृत्ति है, जो परमात्मा से प्रत्यक्ष तात्कालिक, प्रथम स्थानीय और अन्तर्ज्ञानीय सम्बन्ध स्थापित करती है।"65 डॉ. वासुदेव सिंह के मतानुसार, "वस्तुतः अध्यात्म की चरम सीमा ही रहस्यवाद की जननी है।" डॉ. रामनारायण पाण्डेय के अनुसार, "रहस्यवाद मानव की वह प्रवृत्ति है, जिसके द्वारा वह समस्त चेतना को परमात्मा अथवा परम सत्य को साक्षात्कार में नियोजित करता है तथा साक्षात्कारजन्य आनन्द एवं अनुभव को आत्मरूप में प्रसारित करता है।" डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं "रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है, जिसमें वह दिव्य और अलौकिक शक्ति से अपना शान्त और निश्चल संबंध जोड़ना चाहती है और यह सम्बन्ध यहाँ तक बढ़ जाता है कि दोनों में कुछ भी अन्तर नहीं रह जाता।"68 डॉ. कस्तुरचंद कासलीवाल का रहस्यवाद के सम्बन्ध में कथन है कि आध्यात्मिक उत्कर्ष सीमा का नाम रहस्यवाद है। इसी तरह डॉ. पुष्पलता जैन का रहस्यवाद के सम्बन्ध में कहना है कि, "रहस्य भावना एक ऐसा आध्यात्मिक साधन है, जिसके माध्यम से साधन स्वानुभूति पूर्वक आत्म-तत्त्व से परमात्मतत्त्व में लीन, तल्लीन, एक्येक हो जाता है।"70 रहस्यवाद के प्रकार रहस्यवाद की विविध व्याख्याओं एवं परिभाषाओं के आधार पर प्राप्य एवं पाश्चात्त्य विद्वानों द्वारा रहस्यवाद को विभिन्न रूपों में विभक्त करने का प्रयास किया गया है। किसी ने इसे योग से सम्बद्ध किया है तो किसी ने इसे भावनात्मक माना है। किसी ने काव्यात्मक रहस्यवाद के नाम से परिभाषित किया है तो किसी ने इसे मनोवैज्ञानिक रहस्यवाद कहा है। इस प्रकार साहित्यकारों ने रहस्यवाद को एक नहीं, अनेक रूपों में देखने की चेष्टा की है, यथा-प्रकृतिमूलक रहस्यवाद, धार्मिक रहस्यवाद, दार्शनिक रहस्यवाद, साहित्यिक रहस्यवाद, आध्यात्मिक रहस्यवाद, रासायनिक रहस्यवाद, प्रेममूलक रहस्यवाद, अभिव्यक्ति मूलक रहस्यवाद आदि। मार्डन इण्डियन मिस्टिसिज्म में रहस्यवाद के तीन प्रकारों की चर्चा की गई है1. डिवीशनल मिस्टिसिज्म (भक्तिमूलक रहस्यवाद), 2. इन्टेलेक्चुअल मिस्टिसिज्म (बौद्धिक रहस्यवाद), 3. एक्टिविटीक मिस्टिसिज्म (क्रियात्मक रहस्यवाद)।" कबीर और जायसी का रहस्यवाद और तुलनात्मक विवेचन में कबीर और जायसी के अनेकविध रहस्यवादों का उल्लेख किया गया है। उसमें कबीर ने तीन प्रकार के रहस्यवाद का निर्देश किया है-1. अनुभूतिमूलक, 2. योगमूलक और 3. अभिव्यक्ति मूलक आदि रहस्यवाद।" 485 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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