________________ 183. 184. 185. 186. 187. 188. समकालीन पाश्चात्त्य दर्शन, पृ. 219 इह खलु निश्रेयसार्थिना भाषाविशुद्धिरवश्यमारेया, वाक्समितिगुप्त्योरच तदधीन्तावत् तपोश्च चारित्राऽगत्वात् तस्य च परमनिःश्रेयस प्रज्ञापना-भाषापद, सू. 174 दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन-7 वही भाषा रहस्य, गाथा 3 वही, 11-48वां विश्लेषण वही, 11-23 धर्मबिद्र प्रकरण, 4/23 भाषा रहस्य, 11-40 दशवैकालिक अध्ययन, नियुक्ति 761, चूर्णि 11-276, पृ. 237 भाषा रहस्य, पृ. 11-74 वही, पृ. 3 189. . 190. 191.. 192. ,193. 194. 195. 477 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org