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________________ प्रज्ञापना सूत्र में कथनों के कुछ प्रारूपों को असत्य-अमृषा कहा गया है। वस्तुतः ये कथन जिन्हें सत्य या असत्य की कोटि में नहीं रखा जा सकता, असत्य-अमृषा कहे जाते हैं। जो कथन किसी विधेय का विधान या निषेध नहीं करते, उनका सत्यापन सम्भव नहीं होता है और जैन आचार्यों ने ऐसे कथनों को असत्य अमृषा कहा है, जैसे-आदेशात्मक कथन। प्रज्ञापना में भी भिन्न बारह प्रकार के कथनों को असत्यअमृषा कहा गया है। 1. आमन्त्रणी-उपाध्याय यशोविजय ने आमन्त्रणी भाषा को परिभाषित करते हुए कहा-जो भाषा संबोधन युक्त होती है और जिसको सुनकर श्रोता को अवधान होता है, वह भाषा आमन्त्रणी है, ऐसा तत्त्वदर्शी पुरुषों ने कहा है। आप हमारे यहाँ पधारें! आप हमारे विवाहोत्सव में सम्मिलित होवें-इस प्रकार आमन्त्रण देने वाले कथनों की भाषा आमन्त्रणी कही जाती है। ऐसे कथन सत्यापनीय नहीं होते। इसलिए ये सत्य या असत्य की कोटि से परे होते हैं। 2. आज्ञापनीय-आज्ञावचन से युक्त भाषा आज्ञापनी भाषा है।14 'दरवाजा बन्द कर दो', 'बिजली जला दो' आदि आज्ञावाचक कथन भी सत्य या असत्य की कोटि में नहीं आते। ए.जे. एयर प्रभृति आधुनिक तार्किक भाववादी विचारक भी आदेशात्मक भाषा को सत्यापनीय नहीं मानते। इतना ही नहीं, उन्होंने समग्र नैतिक कथनों के भाषायी विश्लेषण के आधार पर यह सिद्ध किया है कि विधि या निषेधरूप में आज्ञासूचक या भावनासूचक ही हैं, इसलिए वे न तो सत्य हैं और न असत्य हैं। 3. याचनीय-इच्छित वस्तु की प्रार्थना में तत्पर भाषा याचनी भाषारूप से ज्ञातव्य है। ऐसा उपाध्यायजी ने कहा है। यह दो इस प्रकार की वाचना करने वाली भाषा भी सत्य और असत्य की कोटि से परे होती है। 4. पृच्छनीय-जिज्ञासित अर्थ कथन-पृच्छनी भाषा है। ऐसा उपाध्यायजी ने भाषा रहस्य में दिखाया * है। यह रास्ता कहाँ जाता है? आप मुझे इस पद्य का अर्थ बतायेंगे? इस प्रकार के कथनों की भाषा प्रच्छनीय कही जाती है। चूंकि यह भाषा भी किसी तथ्य का विधि-निषेध नहीं करती है, अतः इसका सत्यापन सम्भव नहीं है। 5. प्रज्ञापनीय अर्थात् उपदेशात्मक भाषा-विनेयजन के प्रति विधि को बताना, यह प्रज्ञापनी भाषा है, ऐसा जिनेश्वर भगवंतों ने बताया है। जैसे चोरी नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए आदि। चूँकि इस प्रकार के कथन भी तथ्यात्मक विवरण न होकर उपदेशात्मक होते हैं अतः ये सत्य-असत्य की कोटि में नहीं आते। 6. प्रत्याख्यानीय-प्रार्थित चीज का निषेध वचन प्रत्याख्यानी है-ऐसा उपाध्यायजी ने कहा है। जैसे तुम्हें यहाँ नौकरी नहीं मिलेगी अथवा तुम्हें भिक्षा नहीं दी जा सकती-यह भाषा सत्यापनीय नहीं है। 7. इच्छानुकूलिका-अपनी इच्छा का लोभ प्रदर्शन करना-यह इच्छानुलोभ भाषा है। किसी कार्य में अपनी अनुमति देना अथवा किसी कार्य के प्रति अपनी पसन्दगी स्पष्ट करना इच्छानुकूलित भाषा है। तुम्हें यह कार्य करना ही चाहिए, इस प्रकार के कार्य को मैं पसंद करता हूँ, मुझे झूठ बोलना पसंद नहीं है, आदि। आधुनिक नीतिशास्त्र का संवेगवादी सिद्धान्त भी नैतिक कथनों के अभिरुचि या पसंदगी का ही एक रूप बताता है और उसे सत्यापनीय नहीं मानता है। 447 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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