________________ 200. 201. 202.. 203. 204. 205. 206. 207. 208. 209. 210. 211. 212. NNN 213. 214. 215. 216. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, 1/28 उत्तराध्ययन सूत्र, 5/15 तत्त्वार्थ सूत्र, 8/7-15 प्रशमरति, गाथा 35 कर्मग्रंथ, 1/3-31 श्रावक प्रज्ञप्ति, गाथा 12-16 धर्मसंग्रहणी, गाथा 609-623 कम्मपयडी टीका तत्त्वार्थभाष्य, 8/7-15, पृ. 35-373 उत्तराध्ययन टीका, 33/5-15 प्रशमरति टीका, गाथा 35 प्रथम कर्मग्रंथ टीका, गाथा 1/30-31 धर्मसंग्रहणी टीका, गाथा 609-623, पृ. 29-38 श्रावक प्रज्ञप्ति टीका, पृ. 1-21 कम्मपयडी टीका अभिधान राजेन्द्र कोश, 3/259, 4/1995-96 प्रथम कर्मग्रंथ, 1/6 बृहद् द्रव्य संग्रह, 35, टीका-1 प्रथम कर्मग्रंथ, 1/6 अभिधान राजेन्द्र कोश, 4/2438 बृहद् द्रव्यसंग्रह टीका, गाथा 33 प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा 1/12 वही, गाथा 23 अभिधान राजेन्द्रकोश, 6/451; जैन सिद्धान्त कोश, 3/341-42 द्रव्य संग्रह टीका, गाथा 33 प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा 23 . दुक्खं ण देइं आउ णवि सुहं देइं चरुसुवि गईसु। दुक्ख सुहाणाहार धरेई देहद्वियं जीवं। -ठाणांग, टीका 2/4/105 जीवस्स अवटाण कदेंदि हलिव्वणरं-कर्मकाण्ड-11 कल्पसूत्र, पृ. 262-263 प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा 23 217. 218. 19. 220. 222. . 223. 224. 225. 226. 227. 228. 229. 405 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org