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________________ -समस्त विश्व का सही सुमेल है। -सद्धर्म का सत्कथन है। -अहिंसा, संयम एवं तप की पराकाष्ठा रूप है। -परिपूर्ण सच्चा ज्ञान एवं विशिष्ट विज्ञान है। -आचार एवं विचार की विशुद्धि है। -एकांतवाद का निरसन है। -सच्चा त्यागमार्ग और मोक्ष का अनुपम साधन है। -पदार्थ को देखने का सच्चा अद्भुत दृष्टिबिन्दु है। -परस्पर विरोधी धर्मों का एकीकरण है। -विश्वबन्धुत्व एवं संगठनबल प्रेरक अपूर्व शक्ति है। अनेकान्तवाद क्या सिखाता है? 1. समस्त विश्व के सामने एकता रखना सिखाता है। 2. विश्व की प्रत्येक वस्तु को सापेक्ष भाव से निहारना सिखाता है। 3. वस्तु का दृष्टिबिन्दु देखना सिखाता है। 4. वितंडावाद एवं विषवाद से दूर रहने को स्वीकरता है। 5. संगठनबल की प्रेरणा देता है। 6. एकान्तवाद से दूर रहना सिखाता है। 7. मध्यस्थभाव रखना सिखाता है। 8. मिथ्याभिनिवेश वर्जन सिखाता है। 9. वस्तुस्थिति का निर्णय एवं समन्वय करना सिखाता है। 10. सच्चाज्ञान प्राप्त कैसे करना चाहिए, सिखाता है। 11. संसार सागर से तरना सिखाता है। 12. आत्मा से परमात्मा बनने का मार्ग दिखाता है। उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि अनेकान्तवाद का अपने जीवन में कितना महत्त्व है। इस प्रकार हम देखते हैं कि चाहे अर्थतंत्र हो, राजतंत्र या धर्मतंत्र अनेकान्तदृष्टि को स्वीकार किये बिना वह सफल नहीं हो सकता है। वस्तुतः अनेकान्तदृष्टि ही एक ऐसी दृष्टि है, जो मानव के समग्र कल्याण की दिशा में हमें अग्रसर कर सकती है। इस प्रकार अनेकान्त का क्षेत्र इतना अधिक व्यापक है कि कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। अनेकान्तवाद का सिद्धान्त दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन के विरोधों के समन्वय की एक ऐसी विधायक दृष्टि प्रस्तुत करता है, जिससे मानव जाति के संघर्षों के निराकरण में सहायता मिल सकती है। 285 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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