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________________ शुभाकांक्षा चैन्नई, दिनांक : 11-9-2013 जैन परंपरा की देदीप्यमान नक्षत्र, श्रमणधारा की तेजस्वी व्याख्याकार, अध्यात्मक प्रकाशपुंज अलोकित विभामय साध्वीरत्ना श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा., सादर-सविनय मत्थेण वंदामि, आत्मज्योति से दीपित आभा, हे ज्ञानज्योति तुम्हे प्रणाम / विश्वज्योति बनकर निखरो तुम, हे संयमज्योति तुम्हे प्रणाम // भगवान महावीर ने कहा कि कुछ लोग विद्या में श्रेष्ठ होते है, कुछ लोग आचरण में किन्तु ज्ञान और आचरण, श्रुति और शील में जो श्रेष्ठ होता है वो ही वास्तव में श्रेष्ठ होता है / वर्तमान में साध्वीजी अमृतरसाश्रीजी म.सा. का नाम ऐसे व्यक्तियों के श्रेणी में गौरव से लिया जाता है। चैन्नई चातुर्मास में अपने गुरुदेव राष्ट्रसंत-व्यक्तिक्रान्ति के अनस्त सूर्य, जीवन जागृत ज्ञान के विश्वविद्यालय, साहित्य जगत के आदित्य, सृजन के अद्वितिय हस्ताक्षर प.पू. आचार्य भगवंत जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. के 73वे जन्मदिन अनुमोदनार्थ 73 उपवास की कठीन तपस्या एवं महोपाध्याय यशोविजयजी म.सा. के साहित्य रचना पर शोधग्रंथ का सृजन करना इस बात के अनुपम-अलौकिक जीवन साक्षात् प्रमाण है। संयम तपोनिष्ठ साध्वीश्रेष्ठा श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. की सहजता-सरलता, सादगी, त्याग, दृढसंकल्प, सहिष्णुता, विनम्रता, कल्पनाशीलता, बौद्धिकता ने मुझे हृदय से गहनतम तल तक बेहद प्रभावित किया / उन्होंने न केवल स्वयं को अपने गुरु एव संघ के कार्यों में समर्पित किया बल्कि खुद को मनसा-वाचा-कर्मणा से अहूत किया / अपने अन्दर के भावों को शब्दों के रूप में व्यक्त करने की शक्ति से उनकी ख्याति भाषा और भुगोल की सीमाओं को लांघने लगी / जैन तत्त्वविद्या के विविध क्षेत्रों में उनकी गहरी पैठ है, उनकी पज्ञा विवेचनाप्रधान और दृष्टि अनुसंधान परक-समन्वय प्रेरित है। तीक्षण प्रज्ञाबल एवं व्युत्पन्न मेधा शक्ति के कारण शीघ्र ही उन्होंने दर्शन विषय में अधिकाधिक विद्वता प्राप्त कर ली है। वे शब्दबल की अनन्य साधक और भाषा विज्ञान की मौलिक मर्मज्ञ है। भविष्य में भी आपसे इसी तरह के संयम और ज्ञान की अद्भुत साधना की आशा ही नहीं, विश्वास है। अध्ययन-मनन-चिंतन-स्वाध्याय से सतत-निरन्तर आप दीप्तिमान हो / त्रिस्तुतिक जैन संघ आपके ज्ञान एवं तप से धन्य हुआ, कृतकृत हुआ / है अमृतरसाश्रीजी म.सा. आपके अमृतत्त्व को शब्दों की अभिव्यक्ति में कैसे बांधु ? मेरा आत्मार्पण स्वीकार करें / भवदीय नरेन्द्र पोरवाल सचीव - श्री जैन श्वेताम्बर संघ, वागरा प्रवक्ता - श्री अ.भा. श्री राजेन्द्र नवयुवक परिषद शाखा-चेन्नई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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