________________ 322. स्याद्वाद मंजरी, श्लो-22 323. अनेकान्त व्यवस्था, पृ. 65 324. प्रमाणनयतत्वालोक, पृ. 105 325. अनेकान्त जयपताका, पृ. 135 326. षड्दर्शन समुच्चय टीका, कारिका-55 327. अध्याभोपनिषद्, 1/62 328. सागरमल जैन अभिनंनदन ग्रंथ-स्याद्वाद और सप्तभंगी एक चिंतन 329. तस्य भावे तत्वम्, सर्वार्थसिद्धि, 1/2/10, पृ. 4 * 330. नालंदा विशाल शब्दसागर, पृ. 493 331. संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृ. 485 332. भारतीय तत्त्व विद्या, पृ. 5 333. तच्च तह परमठ दव्व सहावं तहेव परमपरं ध्येय सुद्धं परमं एयट्ठा हुँति अभिहाणा। -जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-3, पृ. 352 334. (क) स्थानांग सूत्र, 2/4/95. . (ख) पण्णवणा सूत्र, पद-1 335. तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय-1, सूत्र-4 336. स्थानांग, स्थान-9 337. (क) तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय-1, सूत्र-4 (ख) षड्दर्श समुच्चय हारीभद्रीय वृत्ति-2 (तत्वकानि मोक्ष-रहस्यानि) 338. श्रावकाचार, संग्रह, भाग-5, पृ. 10 339. जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 72 192 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org