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________________ 5000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 000000000000000000000000000000000000000 OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO 000000000 अध्याय चौदह - वैराग्य सम्बोधन ||श्रीभगवानुवाच|| मूल : संबुज्झाह किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुल्लहा, णो हवणमंति राइओ, नो सुलभं पुणारावि जीवियं||१|| छायाः संबुध्यध्वं किं न बुध्यध्वं, सम्बोधिः खलु प्रेत्य दुर्लभा। नो खल्वुपनमन्ति रात्रयः, नो सुलभं पुनरपि जीवितम्।।१।। अन्वयार्थ : हे पुत्रो! (संबुज्झह) धर्म बोध करो (किं) सुविधा पाते हुए क्यों (न) नहीं (बुज्झह) बोध करते हो?क्योंकि (पेच्च) परलोक में (खलु) निश्चय ही (संबोही) धर्म-प्राप्ति होना (दुल्लहा) दुर्लभ है। (राइओ) गयी हुई रात्रि (णो) नहीं (ह) निश्चय (उवणमंति) पीछी आती है। (पुणरावि) और फिर भी (जीवियं) मनुष्य जन्म मिलता (सुलभं) सुगम (न) नहीं है। ___भावार्थ : हे पुत्रो! सम्यक्त्व रूप धर्म बोध को प्राप्त करो। सब तरह से सुविधा होते हुए भी धर्म को प्राप्त क्यों नहीं करते?अगर मानव जन्म में धर्मबोध प्राप्त न किया, तो फिर धर्मबोध प्राप्त होना महान कठिन है। गया हुआ समय तुम्हारे लिए वापस लौटकर आने का नहीं, और न मानव जीवन ही सुलभता से मिल सकता है। मूल : डहरा बुड्ढाय पासह, गब्भत्या विचयंति माणवा। सेणे जह बट्टयं हरे, एवमायाउ खयम्मि तुट्टई||२|| छाया: डिंभावृद्धाः पश्यत, गर्भस्था अपि त्यजन्ति मानवः / श्येनों यथा वर्तकं हरेत्, एवमायुक्षये त्रुट्यति।।२।। अन्वयार्थ : हे पुत्रो! (पासह) देखो (डहरा) बालक तथा (बुड्ढा) वृद्ध (चयंति) शरीर त्याग देते हैं और (गब्भत्था) गर्भस्थ (माणवा वि) मनुष्य भी शरीर त्याग देते हैं (जह) जैसे (सेणे) बाज पक्षी (वट्टयं) बटेर को (हरे) हरण कर ले जाता है (एव) इसी तरह (आउ खयम्मि) उम्र के बीत जाने पर (तुट्टई) मानव जीवन टूट जाता है। भावार्थ : हे गौतम! देखो कितने तो बालवय में ही तथा कितने वृद्धावस्था में अपने मानव शरीर को छोड़ कर यहां से चल बसते हैं और कितने गर्भावस्था में ही मरण को प्राप्त हो जाते हैं। जैसे, बाज पक्षी अचानक बटेर को आ दबोचता है, वैसे ही न मालूम किस समय gooooo000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oope boooooooooooor थ प्रवचन 149 ForPersonal &PriMate Use onDo000000000000000Opairedibrary.org Epagal 300000oooooodh ल
SR No.004259
Book TitleNirgranth Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGuru Premsukh Dham
Publication Year
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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