________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000p 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000064 मूल : वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसंजीवो उ संवसे। कालमणंतं दुरंतयं, समयं गोयम! मा पमायए|९|| छायाः वनस्पतिकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत्। - कालमनन्तं दुरन्तं, समयं गौतम! मा प्रमादीः / / 6 / / अन्वयार्थ : (गोयम!) हे गौतम! (वणस्सइकायमइगओ) वनस्पति काय में गया हुआ (जीवो) जीव (उक्कोस) उत्कृष्ट (दुरंतयं) कठिनाई से अन्त आवे ऐसा (अणत) अनंत (काल) काल तक (संवसे) रहता है। अतः (समय) समय मात्र का भी (मा पमायए) प्रमाद मत कर। ___भावार्थ : हे गौतम! यह आत्मा वनस्पतिकाय में अपने कृत कर्मों द्वारा जन्म मरण करता है, तो उत्कृष्ट अनंत काल तक उसी में गोता लगाया करता है और इसी से उस आत्मा को मानव शरीर मिलना कठिन हो जाता है। इसलिए हे गौतम! पल भर के लिए भी प्रमाद मत कर। मूल : बेइंदिअकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसण्णिअं, समयं गोयम! मा पमायए||१०|| छायाः द्वीन्द्रियकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् / कालं संख्येय सज्ञित, समय गौतम! मा प्रमादीः / / 10 / / अन्वयार्थ : (गोयम!) हे गौतम! (बेइंदिअकायमइगओ) द्वीन्द्रिय योनि को प्राप्त हुआ (जीवो) जीव (उक्कोस) उत्कृष्ट (संखिज्जसंण्णिअं) संख्या की संज्ञा है, जहां तक ऐसे (काल) काल तक (संवसे) रहता है। अतः समय मात्र का भी (मा पमायए) प्रमाद मत कर। भावार्थ : हे गौतम! जब यह आत्मा दो इंद्रिय वाली योगियों में जाकर जन्म धारण करता है तो काल गणना की जहां तक संख्या बताई जाती है। वहां तक अर्थात् संख्याता काल तक उसी योनि में जन्म मरण को धारण करता रहता है। अतः हे गौतम! क्षणमात्र का भी प्रमाद न कर। मूल : तेइंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसांण्णिआ समयं गोयम! मा पमायए।।११।। चउरिंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसंण्णिअं, समयं गोयम! मा पमाया१२|| 900000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन/1106 0000000000oothi boo0000000000000 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only