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________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु 73 वेश धारण कर साधु बन गये। पुण्डरीक ने प्रतिज्ञा की कि स्थविर मुनिराज के दर्शन के उपरान्त ही आहार- पानी ग्रहण करूंगा। कण्डरीक अपने पथ से भटकने के कारण सातवीं नरक में उत्पन्न हुआ एवं पुंडरीक सर्वोच्च देवगति को प्राप्त हुआ। उत्थान एवं पतन का यह सर्वोच्च उदाहरण है। ___ इस प्रकार प्रथम श्रुतस्कन्ध के 19 अध्ययन आध्यात्म के सार पर बल देते हैं। इन अध्यायों में विविध दृष्टान्तों द्वारा अहिंसा, सत्य, इन्द्रिय विजय, कर्मपरिणति, पंच महाव्रत, तीन गुप्ति, पंच समिति, सप्त तत्त्व, नव पदार्थ, मुक्तिसाधना, वैराग्य, के कारण, राग से विराग आदि आध्यात्मिक. तत्त्वों का अत्यन्त ही सरल शैली में वर्णन किया गया है। कथा वस्तु की वर्णन शैली अत्यन्त रोचक एवं उत्साहवर्धक है। ऐतिहासिक दृष्टि भी इसमें समाहित पर्याप्त चिन्तन भी प्राप्त होते हैं। इसकी शैली, रचना-प्रक्रिया कला प्रेमियों के लिए रस प्रदान करने वाली है तथा आधुनिक कहानीकारों के लिए जीवन निर्माण के प्रेरणायुक्त तत्त्वों को समायोजित करने वाली है। . . द्वितीय श्रुतस्कन्ध . ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में दस वर्ग हैं। इन अध्ययनों का विस्तृत विवरण नहीं दिया गया है। केवल सभी के नाम, पूर्वभव के नाम, उनके माता-पिता, नगर आदि का उल्लेख करके शेष वृत्तान्त पिछले वर्ग के अनुसार जानो, ऐसा विवेचन कर दिया गया है। यथा प्रथम वर्ग में चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों का वर्णन है। द्वितीय वर्ग में वैरोचरेन्द्र की अग्रमहिषियों का वर्णन है। . तृतीय वर्ग में दक्षिण दिशा के नौ भवनवासी देवों की अग्रमहिषियों का वर्णन है। चतुर्थ वर्ग में उत्तर दिशा के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का वर्णन है। पंचमवर्ग में दक्षिण दिशा के वाणव्यंतर देवों की अग्रमहिषियों का वर्णन है। षष्ठ वर्ग में उत्तर दिशा के वाणव्यंतर देवों की अग्रमहिषियों का वर्णन है। सप्तम वर्ग में ज्योतिष-केन्द्र देवों की अग्रमहिषियों का वर्णन है। .. अष्टम वर्ग में सूर्य और इन्द्र की अग्रमहिषियों का वर्णन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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