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________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु 67 साध्वियों ने कहा हम ब्रह्मचारिणी साध्वियाँ हैं। हमारे लिए तो यह सुनना भी निषिद्ध है। हम तो धार्मिक क्रिया-कलापों में संलग्न रहते हैं। तुम भी चाहों तो धर्म श्रवण कर सकती हो। पोट्टिला के मन में भी उपरोक्त बातें सुनकर धार्मिक भावों का उदय हुआ और उसने तत्क्षण श्राविका धर्म स्वीकार कर लिया। इससे उसके मन में शान्ति की अनुभूति हुई और मन में धार्मिक आस्था बढ़ने लगी। एक दिन उसने तेतलिपुत्र से कहा मुझे संयममार्ग में जाने की आज्ञा प्रदान करें। तेतलिपुत्र ने कहा यदि तुम देवरूप में उत्पन्न होकर मुझे प्रतिबोधित करने का वचन दो तो मैं दीक्षा हेतु अनुमति देता हूँ। __पोट्टिला देव रूप में तेतलिपुत्र को प्रतिबोधित करने की प्रतिज्ञा लेकर दीक्षित हो गयी। शुद्ध संयम का पालन कर वह आयुष्य पूर्ण कर देवता के रूप में उत्पन्न हुई। / इसी बीच राजा कनकरथ की मृत्यु हो गयी। राजा कनकरथ अपने पुत्रों को कहीं राज्य हथिया न लें यह सोचकर सभी पुत्रों को विकलांग कर देता था। चूंकि मंत्री तेतलिपुत्र था अतः सभी परिजन एवं नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति उसके पास आये और राजलक्षणों से युक्त किसी विश्वासपात्र कुमार को राजा बनाने हेतु आग्रह किया। इस पर तेतलिपुत्र ने एक पूर्व रहस्य पर पर्दा उठाते हुए कहा कि मैंने राजा कनकरथ एवं रानी पद्मावती के एक पुत्र का गुप्त रूप से पालन-पोषण किया है। उस कनकध्वज का आप राज्याभिषेक करें। सभी ने मंत्री की बात को सम्मान देते हुए कनकध्वज का राज्याभिषेक किया। . रानी पद्मावती ने अपने पुत्र को बुलाकर तेतलिपुत्र का सदैव आदर, सम्मान, सत्कार करने की प्रतिज्ञा करवायी। राजा तेतलिपुत्र का बहुत सम्मान करने लगा। इधर पोट्टिलदेव ने प्रतिज्ञा के अनुरूप तेतलिपुत्र को प्रतिबोधित करने के अनेक प्रयत्न किये परन्तु वे सफल नहीं हये, कारण कि राजा द्वारा उसे अत्यन्त सम्मान प्राप्त हो रहा था। तब देव ने राजा को तेतलिपुत्र के विरुद्ध कर दिया। राजा एवं परिवारजनों द्वारा अपमानित तेतलिपुत्र ने अनेक उपयोग द्वारा आत्महत्या करने का प्रयत्न किया परन्तु देव लीला के कारण वह सफल नहीं हो सका। इस अवसर पर देव द्वारा प्रतिबोधित हुआ और उसे जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया। - कालान्तर में संयम अंगीकार कर देहत्याग किया और देवरूप में उत्पन्न हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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