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________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु इसके अनन्तर पुन: उसी जंगल में भयंकर दावानल का प्रकोप हुआ जिससे पशु पक्षी एवं वन की वनस्पतियाँ सभी नष्ट होने लगी। पशु गति को प्राप्त मेरुप्रभ प्राणरक्षा हेतु इधर-उधर जंगल में भागने लगा। उसके साथ अन्य हाथियों का समूह भी इधर-उधर व्याकुल होकर दौड़ने लगा। उन्हें जलता हुआ देखकर जाति स्मरण हो गया। अर्थात् लेश्याविशुद्धि, शुभ अध्यवसाय और शुभ परिणाम आदि के कारण उसी दावानल के समीप वर्षायुक्त स्थान को बनाया जिससे मेरूप्रभ के साथ जंगल की सम्पदाओं और अन्य प्राणियों की भी रक्षा हुई। पुन: दावानल का प्रकोप हुआ। इस बार बचाव का स्थान मेरुप्रभ ने पहले से ही बना रखा था, अत: मेरुप्रभ उसी ओर भागा। जंगल सभी जानवर मेरुप्रभ के पीछे भागे। अचानक मेरूप्रभ के शरीर में खुजली उत्पन्न हुई और उसने जैसे ही शरीर खुजलाने के लिए पैर उपर उठाया कि एक खरगोश नीचे आ गया। . मेरूप्रभ हाथी ने सोचा कि यह खरगोश पंचेन्द्रिय जीव है, इसके नीचे अन्य कई जीव भी होंगे। अतः प्राणी रक्षा के भाव से युक्त होकर मेरुप्रभ ढ़ाई दिन तक खड़ा रहा जिसके परिणामस्वरूप वह हाथी मनुष्य आयु बन्ध को प्राप्त हुआ। सौ वर्ष की आयु पूर्ण करके वही जीव धारिणी के गर्भ में आया और वही शिशु के रूप में मेघकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मेघकुमार उपदेश सुनकर संयम मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है तथा दीक्षा ग्रहण कर तपश्चरण करने लगता है। अन्त में समाधिमरण को प्राप्त करके सिद्ध गति को प्राप्त होता है। . प्रस्तुत अध्ययन में मूलत: निम्न शिक्षाप्रद तथ्यों को इंगित करता है१. तत्त्व जिज्ञासा और अनगार धर्म के प्रति श्रद्धा। 2. पुत्र का माता-पिता के प्रति कर्तव्यभाव। 3. स्वप्नफल आरोग्य, कल्याण और मंगलदायी। 4. . कला व्यक्ति को महान एवं श्रेष्ठ बनाता है। 5. युवकों की कलाएँ 72 मानी गयी हैं और नारियों की कला 64 मानी गयी हैं। 6. कला का मूल उद्देश्य मूक पशुओं की रक्षा का है। . 7. इसमें वनस्पति रक्षा, जीव रक्षा, मानवीय रक्षा, मानसिक रक्षा, शारीरिक रक्षा .. आदि का भाव है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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