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________________ प्राकृत आगम परम्परा एवं ज्ञाताधर्मकथांग जैन आगम ग्रन्थों व भाष्य-ग्रन्थों में 'आगम' के लिए सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना, प्ररूपणा आदि शब्द दिए गए हैं। आगम को ऐतिह्य, आम्नाय और जिनवचन भी कहा गया है।२ धवलाकार ने आगम, सिद्धान्त और प्रवचन को आगम माना है। इसी तरह अन्य सूत्र ग्रन्थों में आगम के विविध नाम दिए गए हैं। आचार्य उमास्वाति ने आगम को श्रुत, आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिह्य, आम्नाय, प्रवचन एवं जिनवचन कहा है। इस तरह विभिन्न देश काल और परिस्थितियों के अनुसार जैन आगम के अनेक नाम रहे हैं। परन्तु वर्तमान में जैन आगम शब्द ही सर्वाधिक प्रचलन में है। (ग) परिभाषाएँ आचार्यों, विद्वानों, लेखकों, ग्रन्थकारों ने आगम की अनेक परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं जिन्हें सम्पूर्ण रूप से यहाँ रेखांकित करना सम्भव नहीं हैं, परन्तु कुछ उदाहरण के रूप में निम्न परिभाषाएँ द्रष्टव्य हैं(१) सर्वज्ञ प्रणीत उपदेशों का जिस साहित्य में संकलन हो उसको ‘आप्तकथन' - कहते हैं। (2) आवश्यकवृत्ति में आचार्य भद्रबाहु ने 'तव-नियम-नाण-रूक्खं तओ पविट्ठा' कहकर तप, नियम, ज्ञानरूपी वृक्ष पर आरूढ़ होकर अनन्त ज्ञानी केवली भगवान * भव्य-आत्माओं को उद्बोध देने के लिये ज्ञानरूपी फूलों की वर्षा करते हैं और गणधर अपनी बुद्धि पर उन समस्त फूलों को एकत्र कर प्रवचनमाला का जब निर्माण करते हैं तब वह निर्मित प्रवचनमाला आगम कहलाती है। (3) आवयकनियुक्ति एवं धवलाटीका में कहा गया है कि तीर्थंकर केवल अर्थरूप का उपदेश देते हैं और गणधर उसे ग्रन्थबद्ध या सूत्रबद्ध करते हैं, जिन्हें . 1: “सूय सुत्त गंथ सिद्धत सासणे आण वयण, उवदेसे। पण्णवण आगमे या एगट्ठा पज्जवा सुत्ते" अनुयोगद्वारसूत्र, 51. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा-८९४. 2. तत्वार्थभाष्य, 1/20. 3. आगमो सिद्धंतो पवयणमिदि एयट्ठो। धवला, 1/20/7, 4. “सूत्र श्रुत, मतिपूर्वद्वयनेक द्वादशभेदम्" तत्वार्थभाष्य, 1/20. .5. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसवेदनमागमः।।१।। . उपचारादाप्तवचनं। प्रमाणनयतत्वालोक 4/1. आप्तोपदेश: शब्दः। न्यायसूत्र, 1/1/7. 6. आवश्यकवृत्ति, गाथा-८९-९०. ... का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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