________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 145 सामाजिक जीवन सामाजिक रचना के ताने-बाने में वर्ण, जाति, परिवार, विवाह, संस्कार, नारीस्थान, आहार-विहार आदि को स्थान दिया जाता है। इसलिए ज्ञाताधर्म में प्रतिपादित सामाजिक जीवन के कुछ उपादान इस प्रकार हैं वर्ण व्यवस्था- आगम साहित्य से यह प्रतीत होता है कि समाज आर्य और अनार्य दो वर्गों में विभाजित था। यद्यपि जैन परम्परा में कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था मानी गयी है जिसमें प्रारम्भ में क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्गों का ही उल्लेख मिलता है। किन्तु कालान्तर में जैन वर्ण-व्यवस्था में भी क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्गों के साथ ब्राह्मण वर्ण का समावेश हो गया जिसे वैदिक परम्परा से प्रभावित व्यवस्था कह सकते हैं। ब्राह्मण- ज्ञाताधर्मकथांग में ब्राह्मण के लिए प्राकृत भाषा का 'माहण' शब्द प्रयुक्त हुआ है। जैन आगमों में अनेकों जगह ब्राह्मण और श्रमण शब्द का प्रयोग एक साथ हुआ है इससे यह प्रतीत होता है कि समाज में इन दोनों को सम्माननीय स्थान प्राप्त था।२ क्षत्रिय- जैन आगम साहित्य में क्षत्रिय के लिए प्राकृत भाषा में 'खत्तिय'३ शब्द आया है। प्राचीनकाल में क्षत्रियों को समाज में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त था। ये छत्र, मुकुट तथा चामर इत्यादि राज्य चिह्नों से युक्त होते थे। वैश्य- वणिक के लिए प्राकृत भाषा में 'वइस्स'५ शब्द है। ज्ञाताधर्म में वैश्य के लिए श्रेष्ठी (सेठ) शब्द का प्रयोग किया गया है।६ क्षत्रियों के बाद इन्हें ही समाज में श्रेष्ठ स्थान दिया गया था। - शूद्र- शूद्र, चाण्डाल आदि निम्न जातियों के रूप में समाज में स्थापित थे। शूद्र प्राय: निम्न श्रेणी का कार्य करते थे इस कारण इनका सर्वत्र निरादर होता था। अन्य जातियों की तरह इनका भी एक परिवार होता था, जहाँ ये रहते थे। चाण्डाल- चाण्डाल पाप कर्म करते थे। इस कारण समाज में इन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। यह अत्यन्त भयानक क्रूर कर्म करने वाले, दया से 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 16/3. 3. विपाकसूत्र 5/6. ____5. विपाकसूत्र, 5/6. 2. 4. 6. वही, 14/49. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/30. ज्ञाताधर्मकथांग, 2/8. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org