________________ सप्तम अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन भारतीय साहित्य में मनोविनोद एवं ज्ञानवर्धन के लिए विशेष उपदेश दिया गया है जो सुनने में मधुर एवं आचरण में सुगम जान पड़ता है। आगम साहित्य धार्मिक आचार-विचार, तत्त्व-चिन्तन, नीति और कर्तव्य का बोध करानेवाला साहित्य है। ज्ञाताधर्मकथांग भी उन्हीं में से एक है। इसमें सिद्धान्त-निरुपण, तत्त्व निर्णय गूढ़ रहस्यों आदि को सुलझाने के लिए कथाओं के माध्यम से जो कथन किया गया है वह सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस कथा प्रधान आगम में जो सांस्कृतिक सामग्री है वह भारतीय संस्कृति की समकालीन प्राचीन परम्परा को प्रतिपादित करती है। इसके कथानकों में पौराणिक एवं तत्कालीन ऐतिहासिक पुरुषों एवं नारियों का चरित्र-चित्रण है। इसमें वर्णित कथाओं में द्वीप, क्षेत्र, पर्वत, नदियाँ, बन्दरगाह, अरण्य, वृक्ष, जंगली पशु, जनपद, नगर आदि भौगोलिक सामग्री उपलब्ध हैं। राजा का निर्वाचन, उत्तराधिकारी मंत्रिमण्डल और उसका निर्वाचन, अन्त:पुर, राजप्रासाद, भवनोद्यान, भवनदीर्घिका, महानसंग्रह आदि राजनैतिक सामग्री इसमें उपलब्ध हैं। वर्ण एवं जाति, पारिवारिक जीवन, परिवार के घटक- माता-पिता और सन्तान का सम्बन्ध, विवाह, विवाह चयन, विवाह-संस्कार, . बह-विवाह, मित्र, दास-दासियाँ, समाज में नारी का स्थान, कन्या, पत्नी, माता, वेश्या, साध्वी, भोजनपान, स्वास्थ्य और रोग, वस्त्राभूषण, नगरों की स्थिति, वाहन, पालतू पशु-पक्षी, उत्सव, रीति-रिवाज आदि सामाजिक सामग्रियों का समावेश है। आजीविका के साधन, समुद्र-यात्रा और वाणिज्य आदि आर्थिक सामग्री भी हैं। प्रमुख धर्म अणुव्रत, महाव्रत, श्रावक धर्म आदि धार्मिक सामग्री का भी उल्लेख है। शिक्षा, साहित्य, गीत, नृत्य, इन्द्रजाल, वीणा, नाट्य सूत्र, प्रहेलिका आदि 72 कलाओं के अतिरिक्त अन्य कई सांस्कृतिक मूल्यों के विवेचन भी ज्ञाताधर्म की कथाओं में समाहित हैं। सारांशत: आधुनिक विज्ञान की दृष्टि एवं अतीत की कला, शिक्षा, संस्कृति के समाजस्य के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org