________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 137 (ब) वियोजक- वा- कयरं देसं वा दिसिं वा 16/212, 213 / (स) संकेतार्थ- जइ चेव- जइ णं तुब्भे 16/218, जइ णं मंते 2/1/35, चेव इह मेव चेव 7/31 / (द) कारणवाचक तेण, तेणेव उवागच्छइ 19/18 / (य) प्रश्नवाचक किं णं- कि णं तुमे 1/53, पिंपि 1/50 / (र) कालवाचक जाव-जाव कालगए 16/226 / (ल) उदाहरण सूचक जहां व से 19/26 / 39. समास ___“समसनं समासः” को संक्षेप में समास कहते हैं। दो या दो से अधिक शब्दों को साथ रखने को समास कहते हैं। ज्ञाताधर्मकथा में जितने भी गद्यांश हैं उन सभी में समास की बहुलता है। सम्पूर्ण गद्यांश का अनुच्छेद समास पद से विभूषित है। इसमें लम्बे समासान्त पदों का प्रयोग है। यथा- सुकुमाल- पाणिपाया............. जुन्तोवयारकुसला।१ अरिहंतं सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसुं।२ . . सभी प्रकार के समासों का प्रयोग ज्ञाताधर्म में हुआ है। यथा (1) अव्ययीभाव समास- जिस समास में पहला पद अव्यय हो उसे अव्ययी-भाव समास कहते हैं, यथा- अहापडिरूपं 1/4 यहाँ पर "अहा' अव्यय पडिरूप से पूर्व है इसलिए अव्ययीभाव समास है। अंतेवासी 1/4, अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्ग 1/196 / (2) तत्पुरुष समास- जिसमें उत्तरपद की प्रधानता होती है उसे तत्परुष समास कहते हैं। यथा- कुलसम्पन्न 1/4 मऊरपोसण पाउग्गेहिं 3/22, जिणदतपुरु 3/22 कोडुवियपुरिझे 5/8 / (3) बहुब्रीही समास- जिस पद से किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो उसे बहुब्रीही समास कहते हैं। जैसे- देवाणुप्पिया 1/40, देवों के प्रिय यह शब्द मूलत: ज्ञाताधर्म में ऐतिहासिक एवं पौराणिक पुरुषों के लिए आया है। ज्ञाताधर्म में अनुच्छेद के अनुच्छेद बहुब्रीही समास के मिल जाते हैं। यथा- जाइसंपन्ने, कुलसंपन्ने ओयंसी, तेयंसी.............तवपहाणे। सभी शब्द आर्य सुधर्मा के लिए प्रयुक्त हुए हैं। 1. ज्ञाताधर्मकथांग 1/16. 2. वही, 8/14. 3. . वही, 1/4. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org