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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 131 35. व्यञ्जनागम मंगल्ले 1/25 ल का आगम सुमिणे 1/25 उ और इ का आगम, प का म स्वप्न खाइम- साइम 1/40 इ का आगम आणियल्लियाओ 1/123 यहाँ पर “ल्'' का आगम हुआ है। मंगल्लेण 1/201 यहाँ पर “ल्' का आगम हुआ है। . सीयल च्छायाए 3/2 यहाँ पर “च" का आगम है। उंबर पुप्फ 5/23 (उदुम्बर पुष्प) लोप वयंजन हुआ है। जम्मण 5/23 अन्तिम में “न” व्यञ्जन का लोप न होकर ण पूर्ण हो गया। कंचुइज्ज 1/112 कंचुइ में “ज्ज" का आगम हो गया परिसा 6/3 गुरुयत्तं 6/4 लहुयत्तं 6/4 त, त्त का आगम। दक्खिणिल्लं, उवरिल्लं, उत्तरिल्लं, दाहिणिल्लं, हेछिल्लं 8/176 इल्ल प्रत्ययों का प्रयोग _ध्वनि परिवर्तन में आगम, लोप विपर्यय, घोषीकरण, अघोषीकरण, स्वीकरण, दीर्धीकरण, स्वरभक्ति, अल्पप्राण, महाप्राण आदि से सम्बन्धित कई विशेषताएँ ज्ञाताधर्मकथा में मिलती हैं। इनके अतिरिक्त भी शब्द परिवर्तन, शब्द रूप, क्रिया रूप आदि की कुछ विशेषताएँ भी है, जिनका हमने पूर्ण विवेचन न देकर एक सामान्य संकेत मात्र ही प्रस्तुत किया है। ज्ञाताधर्मकथा में कथानकों के बीच में देशी शब्दों, सूक्तियों, मुहावरों एवं उपदेशात्मक प्रसंग भी भाषा की रमणीयता को व्यक्त करते हैं जिनका विवेचन साहित्यिक विश्लेषण में यथा सम्भव किया गया है। 36 देशी शब्द ट्टिसि 1/36 खिंवस्य (निंध) 8/1/6 कोरंट 1/44, 1/113 पुष्प विशेष मुहमक्कडियाओ- मुँह मटकाना 8/116 चोलोवयणं 1/97 मिसमिस- उपहास करना 8/116 दिया 1/199. दिन देतूंसए- गेंद से 9/10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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