________________ 110 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन टक्कर हुई। उक्त उदाहरणों एवं विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञाताधर्मकथां में सिद्धान्तों की पुष्टि करने के लिए कहीं लोकोक्तियाँ, कहीं सूक्तियाँ, कहीं मुहावरें एवं कहीं दृष्टान्त आदि देकर अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाया गया है। मानव जीवन के व्यवहार, लोकचित्रण, लोक विरूपण, लोकाचरण आदि के समाधान के लिए जिस शैली को अपनाया है वह शैली ही रोचक, अभिव्यंजक और घटनाक्रम की उदघाटक बन गई है। प्रसंगवश जहाँ नीति विशेष के प्रतिपादन द्वारा कथा को विकसित किया गया है वहाँ पर भी घटनाओं के समाधान हेतु लोकोक्तियों और सूक्तियों का प्रयोग किया गया है। ज्ञाताधर्म का साहित्यिक स्वरूप बिम्ब-प्रतिबिम्ब से जुड़ा हुआ है इसलिए यह कहने में संकोच नहीं हो रहा है कि इसमें वक्रता, व्यंजकता, ध्वनि विज्ञान, मुहावरें, प्रतीक, लोकतत्त्व, आलंकारिक विन्यास, रसानुभूति, वर्णविन्यास, चरित्र-चित्रण, जीवन दर्शन, जीवन पद्धति आदि विषय का सांगोपांग चित्रण एक स्वतंत्र शोध-प्रबन्ध की अपेक्षा रखता है। यही नहीं अपितु इस कथा में जितनी कथाएँ हैं उन सभी का अलग अलग दृष्टिकोण भी है जो जीवन के विविध पक्षों का सजीव चित्रण करता है। यदि इसके साहित्य स्वरूप को ध्यान में रखकर अध्ययन का विषय बनाया गया तो निश्चित ही पुराण, इतिहास के अतिरिक्त भी जैन दर्शन के प्रमुख अंग भी इसकी महनीयता का व्याख्यान कर सकेंगे। किन्तु कथा के. मूल में जो भी उद्देश्य है वह साहित्यिक अध्ययन से ही सामने आ सकता है। इसी विचार को ध्यान में रखकर साहित्यिक विश्लेषण को विशेष रूप में प्रस्तुत करने का जो प्रयास किया गया है वह अवश्य ही साहित्य की अमूल्य निधि को सुरक्षित रखने में सहायक होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org