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________________ तक पानी पीता है, प्याऊ पर बैठ कर पानी पिलानेवाली सुन्दरी भी पानी की धार को कम-कम करती जाती है। णेहब्भरियं सब्भावणिब्भरं रूव-गुणमहग्यवियं। समसुह-दक्खं जस्सऽत्थि माणुसं सो सुहं जियइ। - चउप्पन्नमहापुरिसचरित, गा. २६ .. - स्नेहपूरित, सद्भावयुक्त और रूप-गुणों से सुशोभित नारी पति के सुख-दुःख में समान रूप से भाग लेती है, इस प्रकार की नारी को प्राप्त कर मनुष्य सुख और शान्तिपूर्वक जीवन-यापन करता है। वरजुवइविलसिणीणं गंधव्वेण च एत्थ लोयम्मि। जस्स न हीरइ हिययं सो पसुओ अहव पुण देवा। - नागपंचमीकहा १०/२९४ _- सुन्दर युवतियों के हाव-भाव से अथवा संगीत के मधुर आलाप से जिसका हृदय मुग्ध नहीं होता वह या तो पशु है अथवा देवता। संगीत, काव्य और रमणियों के हाव-भाव मानव-मात्र को रससिक्त बनाने की क्षमता रखते हैं। _जं जि खमेइ समत्थो, धणवंतो जं न गव्वमुबहइ। ____ जं च सविज्जो नमिरो, तिसु तेसु अलंकिया पुहवी॥वज्जा० ८७॥ - सामर्थ्यवान् वही जो क्षमा करे, धनवान् वही जो गर्व न करे, विद्वान् वही जो विनम्र हो – इन तीनों से ही पृथ्वी अलंकृत होती है। किसिणिज्जति लयंता उदहिजलं जलहरा पयत्तेण। धवली हुंती हु देंता, देंतलयन्तन्तरं पेच्छ॥ वज्जा० १३७॥ - बादल समुद्र से जल लेने में काले (श्यामल) पड़ जाते हैं और जल देने में अर्थात् वर्षा हो जाने के उपरान्त धवल (उज्जवल) हो जाते हैं; देने और लेने वाले का यह अन्तर स्पष्ट देखा जा सकता है। ८५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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