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मुख
है- यहां किस प्रयोजन से आये हो ? वह कहता है - "हे राजन् प्रातः काल में मेरे मुखदर्शन से भोजन प्राप्त नहीं होता, किन्तु आपके को देखने से मेरा वध होगा, तब नागरिक जन क्या कहेंगे ? मेरे मुख से श्रीमानजी (आपके) के मुखदर्शन का कैसे फल प्राप्त हुआ। नागरिक जन भी प्रातः काल आपके मुख को क्यों देखेंगे ?" इस प्रकार उसके युक्तिपूर्ण वचनों से संतुष्ट राजा ने वध के आदेश का निषेध ( निरस्त) करके और पारितोषिक देकर उस अमांगलिक को संतुष्ट किया।
छ) महाराष्ट्री - गाथाओं के उदाहरण
अमिअं पाउअकव्वं पढिउं अ जे ण आणन्ति ।
कामस्स तत्ततन्तिं कुणन्ति ते कहँ ण लज्जन्ति । । गा०स० १.२ ॥ जो अमृत रूप प्राकृत-काव्य को पढ़ना और सुनना नहीं जानते हैं और काम (शृङ्गार) की तत्त्वचिन्ता करते हैं, वे लज्जित क्यों नहीं होते ? |
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पाइयकव्वम्मिं रसो जो जायइ तह व छेयभणिएहिं ।
यस् य वासिय-सीयलस्स तित्तिं न वच्चामो ॥ वज्जा०२१ ।। प्राकृत-काव्य में जो रस (आनन्द) होता है, एवं निपुण ( व्यक्तियों) की उक्ति पूर्ण वचनों से जो रस उत्पन्न होता है और सुगन्धित शीतल जल का आनन्द जो होता है, उसमें (हम सभी कभी ) तृप्ति को प्राप्त नहीं कर पाते हैं ।
: देसियसद्दपलोट्टं महुरक्खरछन्दसंठियं ललियं । फुडवियडपायडत्थं पाइयकव्वं पढेयव्वं ।। वज्जा० २८ ।।
अर्थात् देशी शब्दों से रचित तथा मधुर अक्षरों एवं छन्दों में स्थित (निबद्ध), विलास से पूर्ण, स्पष्ट, सुन्दर, प्रकट अर्थ वाले ललित प्राकृत काव्य पठनीय हैं।
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