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________________ नायिका के समान प्रतिपादित किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने काव्यानुशासन एवं विश्वनाथ में अपने साहित्य दर्पण में सट्टक को पूर्णतः एक ही भाषा प्राकृत में रचित माना है। कुछ विद्वानों ने सट्टक एक भाषा में रचित जरूर माना है किन्तु वह भाषा प्राकृत एवं संस्कृत हो सकती है। राजशेखर ने कर्पूरमंजरी (१-६) में सट्टक को 'नाटिका' के समान बताया है, जिसमें प्रवेशक, विष्कम्भक और अंक नहीं होते। अंक के स्थान पर 'जवनिका' कहा है। इसमें कम से कम चार जवनिकायें होती हैं। सट्टक का नामकरण नायिका के नाम पर ही होता है, जिसे पाउडबंध (प्राकृतबंध) कहा जाता है। इसमें स्त्री पात्रों की बहुलता होती है। इसकी नायिका गंभीरा और मानिनी होती है। इसका नायक . धीरललित होता है। सट्टक लोकनृत्य से समुत्पन्न होता है। द्राविड भाषा में अट्ट या आट्ट शब्द मूलधातुरूप अड्ड या आडु है, जिसका अर्थ है नृत्य, अभिनय या हावभाव प्रदर्शन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। ख) उपलब्ध प्रमुख सट्टक महाकवि राजशेखर कृत कर्पूरमंजरी, कवि रुद्रदास कृत चन्दलेहा, कवि घनश्याम कृत आनन्दसुन्दरी, नयचन्द्रकृत रम्भा मंजरी, विश्वेश्वर कृत श्रृंगार मंजरी - ये सट्टक पूर्णतः प्राकृत भाषा में लिखित उपलब्ध होते हैं। साहित्य दर्पणकार ने विलासवती नामक सट्टक का भी उल्लेख किया है, किन्तु यह उपलब्ध नहीं है। इन सड़कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें सभी प्रकार की प्राकृतों का ही प्रयोग किया गया है अन्य किसी प्राकृतेतर भाषाओं का नहीं। ४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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