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________________ ॥ पुरोवाक्॥ 'प्राकृत भाषा विमर्श' इस संस्थान के निदेशक (शैक्षिक) प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी द्वारा तैयार की गयी प्राकृत भाषा और इसके वैशिष्ट्य से परिचित कराने वाली एक अच्छी पुस्तक है। यह पुस्तक उन जिज्ञासुओं के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है जो बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी द्वारा नियमित रूप से पिछले २५ वर्षों से सफलतापूर्वक संचालित प्राकृत भाषा और साहित्य की ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं में प्राकृत भाषा एवं साहित्य का अध्ययन करने आते हैं तथा जिन्हें प्राकृत भाषा के विषय में जिज्ञासा है। , सभी प्रकार की प्राकृत भाषाओं और इनके साहित्य तथा एतद्-विषयक विविध जानकारियों से सम्बन्धित सरल भाषा और संक्षेप में लिखित इस प्रकार की पुस्तक की काफी समय से आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। जिसकी पूर्ति इस पुस्तक के माध्यम से प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी ने की है। इससे प्राकृत भाषा को जानने-समझने के जिज्ञासुओं एवं इससे लगाव रखने वाले सुधी पाठकों को काफी लाभ तो होगा ही, साथ ही प्राकृत भाषा के अवदान और इसकी समृद्धि से परिचित होने का अवसर भी प्राप्त होगा। प्रायः सभी भारतीय भाषाओं और इनके विशाल वाङ्मय को भाषिक, बौद्धिक और साहित्यिक रूप में प्रभावित करने वाली यह अति समृद्ध और जीवन्त प्राचीन भाषा कैसे उपेक्षित रह गयी, इस सम्बन्ध में चिन्तन के साथ ही इसके अधिकाधिक विकास एवं प्रसार-प्रचार की बहुत आवश्यकता है। . केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु अनुदान देकर एक अनुकरणीय कार्य किया है क्योंकि हिन्दी के विकास में मूलतः प्राकृत भाषा का सर्वाधिक योगदान स्पष्ट है। ___प्राकृत भाषा के वैशिष्ट्य को उजागर करने वाली इस पुस्तक को तैयार करने में संस्थान की ओर से हम प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं एवं यथोचित मार्गदर्शन हेतु सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं निदेशक प्रो. गयाचरण त्रिपाठी जी के भी आभारी हैं। हमें आशा है कि प्राकृत प्रेमी जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक अतीव लाभप्रद सिद्ध होगी। - डॉ. जितेन्द्र बी. शाह, उपाध्यक्ष, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली - एवं निदेशक एल. डी. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, अहमदाबाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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