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________________ अव्ययों का बोध आवश्यक है और इनका ज्ञान प्राकृत एवं देशी शब्दों के ज्ञान के बिना कठिन है। . इस प्रकार छान्दस के आधार से तत्कालीन भाषा को व्याकरण के माध्यम से नियन्त्रित कर, स्थिरता प्रदान करते हुए उस भाषा को नया रूप लौकिक संस्कृत के रूप में स्वरूप प्रस्तुत किया। प्राकृत को सम्मान प्रदान करने वाले महापुरुष और कवि प्राकृत भाषा को अपनाकर इसे व्यापकता प्रदान करने वाले अनेक महापुरुष हुए हैं। जैन धर्म एवं इसकी परम्परा के अनुसार तो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर अन्तिम और चौबीसवें तीर्थंकर महावीर पर्यन्त सभी तीर्थंकरों के प्रवचनों की भाषा प्राकृत ही रही है। तीर्थंकर महावीर की वाणी रूप में उपस्थित पवित्र विशाल आगम साहित्य आज विद्यमान है। . . तीर्थंकर महावीर और गौतमबुद्ध दोनों ने ही अपने धर्मोपदेशों का माध्यम इसी लोकभाषा प्राकृत को बनाया। तीर्थंकर महावीर के उपदेशों की भाषा को अर्द्धमागधी प्राकृत तथा गौतमबुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी (पालि) कहा गया है। इन दोनों महापुरुषों ने अपने उपदेश संस्कृत भाषा में न देकर जन (लोक) भाषा प्राकृत में दिये। भगवान् बुद्ध ने अपने शिष्यों को अपनी-अपनी भाषा में 'धम्म' 'सीखने की आज्ञा दी थी' (चुल्लग्ग ५/६१) जिससे प्राकृत जन भी शास्ता के उपदेशामृत का करुणमति से यथेच्छ पान कर सके, अतः महापुरुष बुद्ध की वाणी लोकभाषा थी। कहा भी है - . “प्राकृतैरति जनैर्मदीयोपदेशामृतं येथेच्छे समुपदिदेश महापुरुषः। का नाम सा लौकिकी वाणी या भगवता तदर्थ सम्भाविता-मगधेषु तदानीम् उपयुज्यमाना काचिद् भाषा। सा भाषा अपि मागधीत्येवोच्यताम।"- (पालि जातकावलि, पृ. ३) __ दिल को छू लेने वाली अपनी बोलियों में इन महापुरुषों द्वारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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